पिछले दिनों चेन्नई के एक स्कूल ने एक फरमान जारी किया कि जिस बच्चे का सोशल मीडिया पर अकाउंट होगा, उस का स्कूल में दाखिला नहीं होगा. स्कूल में दाखिला लेते समय दाखिले के फार्म पर इस बात की जानकारी देनी होगी. स्कूल ने बच्चों को सोशल नैटवर्किंग साइट पर प्रोफाइल न बनने की हिदायत दी है, साथ ही जब तक बच्चे स्कूल में हैं उन के प्रोफाइल बनाने पर भी रोक लगा दी गई है. दरअसल, इन दिनों किशोरवय बच्चों के बीच फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसी सोशल साइट्स की लोकप्रियता में काफी वृद्धि दर्ज की गई है. लेकिन इन मीडिया मंचों पर 7-8 साल के बच्चों का यूजर प्रोफाइल मिलना और अधिक चौंकाने वाली बात है.

बच्चों में तनाव की वजह

इन सोशल साइट्स पर बच्चों की व्यस्तता देख कर ऐसा लगने लगा है कि ये इन के बिना नहीं रह सकते. बच्चे जोकि सोशल मीडिया का काफी उपयोग करते हैं, उन में सुबह उठते ही और रात को सोने जाने से पहले तक इन वैबसाइटों को ऐक्सैस करने की आदत पड़ जाती है. घंटों औनलाइन रहने की इस आदत के कारण उन्हें अपने शौकों को पूरा करने अथवा खुद का आत्मविश्लेषण करने का समय नहीं मिल पाता. उन के तनावग्रस्त होने का यह भी एक प्रमुख कारण है. इस के अतिरिक्त यह भी माना जाता है कि जो बच्चे आमनेसामने बात करने में शरमाते हैं वे सोशल मीडिया के जरिए लोगों के साथ आसानी से बात कर लेते हैं. लेकिन ऐसा करने पर वे निजी तौर पर लोगों से बात करने में और असहजता महसूस करने लगते हैं.

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