ऐसा मालूम होता है कि पर्यावरण मंत्रालय को पर्यावरण, वन्य जीवन, जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण की कोईर् समझ है ही नहीं. लगभग हर फैसला विध्वंसक बन जाता है और मंत्रालय राजनीति से प्रेरित हो कर काम करता नजर आता है न कि विज्ञान से. शातिर लोगों को यह बात समझ आ गई है और वे इस का लाभ उठाने में लग गए हैं. हर क्षेत्रीय पशु व पर्यावरण अधिकारी की पर्यावरण में रुचि समाप्तप्राय हो गई है और वे ऐसे निर्णय लेने लगे हैं जो अवैध और पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं. मुझे देश के लिए यह भयानक परिस्थिति लगती है.

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के मुख्य वन्यजीव वार्डन, जिस की जिम्मेदारी वन्य जीवों को बचाने की है, ने वास्तव में पर्यावरण मंत्रालय को लिखा है कि (भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है) नमकीन पानी में रहने वाले मगरमच्छों को मार डाला जाए. वजह, उन्होंने कुछ पर्यटकों पर हमला कर दिया था.

बेतुकी मांग

नमकीन पानी में रहने वाले ये मगरमच्छ बहुत ही संरक्षित और लुप्त होने की कगार पर हैं और वाइल्ड लाइफ प्रोटैक्शन एक्ट 1972 के शैड्यूल प्रथम में है. तरुण कुमार नाम के इस अधिकारी ने इन मगरमच्छों को इस शैड्यूल से हटाने की मांग की है ताकि उन्हें मारा जा सके.

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रोचक बात यह है कि मगरच्छ की खाल लाखों में बिकती है. जूते और हैंडबैग बनाने के लिए इन को देश के बाहर तस्करी से ले जाया जाता है. हर वन्य जीव को मारने के अनुरोध के पीछे असल में यह तस्करी होती है, जिस में एक जीव के नाम पर 4-5 को मारने का मौका मिल जाता है.

यह इसलिए सत्य है कि मगरच्छों के केवल 23 आक्रमणों की शिकायत दर्ज हुई है वह भी पूरे द्वीप समूह में पिछले 13 सालों में.

असल में उपराज्यपाल और मुख्य वन्य जीव वार्डन समुद्रीतटों पर होटल बनाना चाहते हैं और होटल वालों के एजेंटों की तरह काम कर रहे हैं. इसीलिए उन्होंने मगरमच्छों की जो गिनती बताई है वह वास्तविकता से ज्यादा है और बिना गिनती के दी गई है. बायोलौजिस्टों का कहना है कि इस इलाके में केवल 500 मगरमच्छ हैं जबकि प्रशासन गिनती बढ़ाचढ़ा कर 1700 बता रहा है.

बढ़ रही है संख्या

सरकारी कमेटी में टूर आपरेटर्स की एसोसिएशन का भी एक सदस्य है. इस ऐसोसिएशन ने ही पर्यटकों पर मगरमच्छों के आक्रमणों से पर्यटकों में फैलते भय की चिंता प्रकट की है और ये द्वीप और उन के तट लेटने और वाटर स्पोर्ट्स के लायक न रहने का डर व्यक्त किया है. यानी एक पूरी प्रजाति को नष्ट कर दिया जाए ताकि पर्यटक वाटर स्कीइंग का बिना डरे मजा ले सकें.

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खारे पानी के मगरमच्छ कई लाख साल पुराने हैं. ये 7 मीटर तक लंबे हो सकते हैं और रेंगने वाले रैप्टाइलों में सब से बड़े हैं. यह दक्षिणपूर्व एशिया, उत्तरी आस्ट्रेलिया, सुंदरवन (बंगाल) उड़ीसा में हैं. ये लंबी दूरी तक तैर सकते हैं. वैसे तो ये पानी में रहते हैंपर इन्हें गरमी पाने के लिए जमीन पर आना होता है.

1972 तक इन की संख्या 31 तक रह गई थी पर फिर वाइल्ड लाइफ प्रोटैक्शन एक्ट के बाद 45 साल में ये 500 तक पहुंचे हैं.

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