सोशल मीडिया पर डीपफेक्स बना कर अपलोड करने वाले प्लेटफौर्मों के बारे में अब सरकार कानून बना रही है. आर्टिफिशियल इंटैजिलैंस टैक्निक से अब किसी का धड़ व किसी का चेहरा जोड़ कर फोटो ही नहीं, फिल्म भी एडिट कर बनाई जा सकती है. देखने वालों को यह सच लगेगी. कानून के अनुसार, संबंधित प्लेटफौर्म को शिकायत मिलने के 36 घंटों के भीतर उसे हटाना होगा और सब्सक्राइबर को कंटैंट वैरिफिकेशन टूल्स को डाउनलोड करने की सुविधा दी जाएगी.

आर्टिफिशियल इंटैजिलैंस टैक्निक जहां बहुत से काम आसान करने वाली है वहीं कंटैंट क्रिएशन से यूजर्स और व्यूअर्स के लिए यह परेशानियां खड़ी करने वाली भी है. डीपफेक्स उन्हीं में से एक है जिस में किसी पौर्न आर्टिस्ट के चेहरे को हटा कर किसी और का चेहरा लगाया जा सकता है जिसे एक्सपर्ट भी नहीं पकड़ सकते.

यह टैक्निक रिवेंज (किसी से किसी तरह का बदला लेने) के लिए खूब इस्तेमाल की जाएगी तो वहीं यह यूट्यूब और रील्स की फैक्चुएलिटी पर सवालिया निशान खड़े कर देगी. मुफ्त के यूजर्स तो इसे सम?ा ही नहीं पाएंगे, न ही फैक्ट चैक कर पाएंगे. जैसे व्हाट्सऐप मैसेज, जिन में जानकारी का दावा किया जाता था, अब भरोसे के लायक नहीं रह गए और फौरवर्ड करने वाले कतरा रहे हैं वैसे ही अब यूट्यूब, इंस्टाग्राम, पिंटरेस्ट, फेसबुक रील्स की असलियत पर निशाने लगाए जाने शुरू हो जाएंगे. लोगों को पता ही नहीं रहेगा कि वे जो देख रहे हैं क्या वह सही है, फैक्ट है या बनावटी है.

सदियों से लोग किस्सों को इतिहास सम?ाते रहे हैं. आज भी रामायण और महाभारत को इतिहास में घुसाने की कोशिश वही सरकार कर रही है जो फैक्ट चैक टूल्स से डीपफेक्स को जंचवाना चाहती है. रामायण और महाभारत काल का अभी तक कहीं कोई आर्कियोलौजिकल एविडैंस नहीं मिला है, कहीं कोई महल, मकान, रथ, धनुष, लाशों का अंबार नहीं दिखा है. जो भी जहां मिलता है वह कार्बनडेटिंग टैक्निक से पता चलता है कि वह 400-500 साल पुराना भी नहीं है.

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