‘कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता’, ‘रईस’ फिल्म के इस डायलौग को सच साबित कर रही हैं आज की पावरफुल महिलाएं. आज के महंगाई के जमाने में महिलाओं के लिए भी कमाना जरूरी हो गया है. ज्यादातर शिक्षित महिलाएं टेबलवर्क करना पसंद करती हैं. पर जो महिलाएं कम पढ़ीलिखी होती हैं उन के पास मजदूरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता.

गोलगप्पे का नाम सुनते ही मुंह से पानी आने लगता है. कहा जाता है कि गोलगप्पे बेचने का काम पुरुष ही करते हैं, मगर अब अहमदाबाद शहर की खुद्दार महिलाएं इस बात को गलत साबित करती दिख रही हैं. हम ने ऐसी ही कुछ कर गुजरने का जज्बा लिए गोलगप्पे बेचने की शुरुआत करने वाली कुछ महिलाओं से उन के संघर्ष से जुड़ी रोचक बातचीत की.

ख्याति

अहमदाबाद के रायपुर की निवासी ख्याति गुज्जर सिर्फ 12 क्लास तक पढ़ी हैं. 35 साल की ख्याति 2 बच्चों की मां हैं. पति कंस्ट्रक्शन का व्यवसाय करते हैं. वे शादी के बाद अपने जीवन में कुछ करना चाहती थीं, अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थीं. पर शादी के बाद उन्होंने अपने शौक और कुछ करने की ख्वाहिश पर विराम लगा दिया था. जैसेजैसे वक्त आगे बढ़ा उन के शौक और ख्वाहिश ने करवट बदली. ख्याति के पति भी चाहते थे कि उन की पत्नी स्वनिर्भर बने. ख्याति ने मणीनगर के रामबाग विस्तार में गोलगप्पों का ठेला लगाना शुरू किया. शुरू में ठेला चलाने और खड़े रहने में हिचकिचाहट होती थी, फिर भी काम चालू रखा.

ख्याति 2 सालों से गोलगप्पों का ठेला लगा रही हैं. वे गोलगप्पे घर पर ही बनाती हैं. वे दिन में 800 तक कमा लेती है. उन के अनुसार, आज के वक्त में 1 कमाने वाला और 4 खाने वाले हों तो एक की कमाई से घर चलाना मुश्किल हो जाता है. इसीलिए हर महिला को चाहिए कि वह अपने बलबूते पर कोई न कोई काम करे ताकि उस का आत्मविश्वास और काम करने की इच्छा बढ़े.

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