महाराष्ट्र सरकार ने महाराष्ट्र के सभी निजी व सरकारी स्कूलों में मराठी भाषा अनिवार्य करने जा रही है. अभी तक केवल 8वीं कक्षा तक सैंट्रल बौर्ड व महाराष्ट्र बोर्ड में मराठी एक विषय के रूप में पढ़ाई जा रही है. अब यह आईसीएसई स्कूलों पर भी लागू होगा. अपने आप में यह निर्णय ठीक है. यह भी ठीक है कि मुंबई जैसे बड़े शहरों में लोगों का काम बिना मराठी जाने आसानी से चल जाता है पर यह गलत ही है. महाराष्ट्र में बहुत से काम मराठी में ही होते हैं और आजकल मराठी से हिंदी, इंग्लिश या अन्य भाषाओं में अनुवाद करने वालों की बेहद कमी है. यदि इन भाषा वालों को मराठी पढ़ने को मिलेगी और उन्हें आसपास इसे बोलने वाले लोग भी मिलेंगे तो वे भाषा की सही भावना को समझ सकेंगे.

भारतीय भाषाओं के प्रति नीची दृष्टि असल में संस्कृत के वकील ब्राह्मणों द्वारा दी गई थी. मराठी या अन्य भाषाओं को अनपढ़ों की भाषा माना गया था. बहुत सी भाषाओं की लिपि भी नहीं थी जबकि देवनागरी सारे देश में उपलब्ध थी क्योंकि उस भाषा में जो भी सोचा या बोला जाता था उस के लिखने पर अगर पाबंदी नहीं थी तो उसे अनावश्यक माना जाता था.

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आज भी देश का अधिकांश तथाकथित शिक्षित वर्ग किसी भी भाषा में लिखने में असमर्थ है. केवल अति योग्य इंग्लिश में अपने भाव दे सकते हैं. औरतों में यह कमी तेजी से फैल रही है.

जब से मोबाइल मिला है, औरतों ने पत्र लिखने बंद कर दिए हैं और वे या तो वौइस कौल करती हैं या फिर वीडियो कौल. लिखने का झंझट ही नहीं. मराठी भाषी लोग भी मराठी में लिखने में अचकचाते हैं. यह बात अन्य भाषा वालों के साथ भी है.

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