Surname After Marriage: लड़कियों के नाम के साथ 2 सरनेम देखा जाना आम हो गया है. एक पिता का, दूसरा पति का. कुछ महिलाएं विवाह के बाद पति का सरनेम पहले और पिता का बाद में लगाती हैं, तो कुछ ने अपने पूर्व नाम को अपरिवर्तित रखते हुए पति का नाम केवल जोड़ा है. यह बात अब केवल नाम तक सीमित नहीं रह गई है. यह पहचान, सामाजिक सत्ता, लैंगिक समानता और व्यक्तिगत अधिकार से जुड़ गया है.
अब यह सिर्फ पारिवारिक परंपरा या दस्तावेजों की सुविधा का विषय नहीं है. यह इस बात की अभिव्यक्ति है कि एक स्त्री अपनी पूर्व पहचान को कितना स्वीकारती है और विवाह के बाद उस में कितना और क्या जोड़ना चाहती है. एक तबका इसे महिलाओं की प्रगतिशीलता से जोड़ कर देखता है और कहता है कि अब तक केवल स्त्री ही विवाह के बाद अपना सरनेम बदलती आई है, पुरुष नहीं. यह एक असंतुलित सामाजिक संरचना को दर्शाता है.
व्यावहारिक यथार्थ: नाम बदलना आसान नहीं
आज एक सामान्य युवती के पास शैक्षणिक, आर्थिक, डिजिटल, मैडिकल और शासकीय दर्जनों दस्तावेज होते हैं. विवाह के बाद उन में नाम बदलना एक जटिल और कभीकभी अपमानजनक प्रक्रिया बन जाती है. अगर विवाह टूटे तो उस पहचान को फिर से बदलना, सिर्फ मानसिक ही नहीं, तकनीकी त्रासदी भी बन सकता है.
नाम बदलना अब भावनात्मक नहीं
इस में सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पुरुषों के लिए यह कभी प्रश्न ही नहीं बनता.
उन का नाम अडिग रहता है, अपरिवर्तनीय और प्रतिष्ठित.
कभी आप ने सुना कि किसी पुरुष ने विवाह के बाद पत्नी का सरनेम अपनाया हो? नहीं न? क्योंकि सरनेम अब भी एक पितृसत्तात्मक गौरव का प्रतीक बना हुआ है खासकर जो जातियां या समुदाय ‘श्रेष्ठ’ समझे जाते हैं वे अपने सरनेम को छोड़ना तो दूर उस में तनिक भी बदलाव को अपमान समझते हैं. उन के लिए यह जातिगत मान का प्रतीक है, एक ब्रैंड है.
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