Relationship Advice: हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया, जिस में बिंदी लगाने को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद हो गया. दरअसल, पत्नी को अपने माथे पर रोजरोज नई बिंदी लगाना अच्छा लगता था. लेकिन यह बात महिला के पति को नागवार गुजरती थी. पति का कहना था कि वह हर दिन काफी बिंदियां लगाती हैं और बरबाद करती है. बिंदी की बात को ले कर पतिपत्नी के बीच झगड़ा इस हद तक बढ़ गया कि बात तलाक तक पहुंच गई.
वहीं एक और मामले में ‘हाई हील्स सैंडल’ के कारण पतिपत्नी के बीच झगड़ा हो गया. पति ने पत्नी के सेफ्टी का हवाला देते हुए उसे ‘हाई हील्स सैंडल पहनने से मना किया जो पत्नी को अच्छा नहीं लगा और इसी बात को ले कर उन के बीच झगड़ा इतने ज्यादा बढ़ गया कि मामला कोर्ट तक पहुंच गया.
कुछ समय पहले एक मामला आया था जिस में एक महिला के सिंदूर और मंगलसूत्र न पहनने को ले कर पति को इतना एतराज हुआ कि उस ने गुवाहाटी हाई कोर्ट में तलाक के लिए याचिका दाखिल कर दी. ‘शादीशुदा होते हुए भी अगर एक पत्नी सिंदूर और मंगलसूत्र नहीं पहनती है तो यह पति के लिए मानसिक क्रूरता समझा जाएगा’ यह टिप्पणी करते हुए हाई कोर्ट ने पति की तलाक की अर्जी को मंजूरी दे दी.
कोर्ट ने यह भी कहा कि हिंदू रीतिरिवाजों के हिसाब से शादी करने वाली महिला अगर सिंदूर नहीं लगाती और चूढ़ी नहीं पहनती है तो ऐसा करने से वह अविवाहित लगेगी. कोर्ट के कहने का मतलब था कि एक औरत के लिए शादी के बाद शादी का टैग लगाना जरूरी है.
कटघरे में महिला
विवाह के बाद एक औरत अपनी मांग में सिंदूर लगाना चाहती है या नहीं, यह मरजी खुद उस महिला की होनी चाहिए. लेकिन इस के लिए उस महिला का पति और जज, जो खुद एक पुरुष हैं, इसे क्रूरता बताते हुए महिला को कटघरे में खड़ा कर दिया.
बात चाहे बिंदी, सिंदूर लगाने की हो या हाई हील्स पहनने की, यह महिलाओं की अपनी मरजी और चौइस होनी चाहिए. लेकिन अकसर देखा गया है कि पति ही यह डिसाइड करता है कि उस की पत्नी क्या पहनेगी और उस पर क्या अच्छा लगेगा. यहां तक कि पत्नी के कहीं आनेजाने पर भी पति की पैनी नजर होती है. वह कब बहार गई और इतने बजे तक घर क्यों नहीं आई? सवाल दागे जाते हैं. कहीं न कहीं पति अपनी पत्नी को नियंत्रित करने की कोशिश करता है. कई पति तो पत्नी को नौकरी तक नहीं करने देना चाहते हैं. वे चाहते हैं औरत घर, बच्चे और उन के बूढ़े मांबाप को संभाले. कई जगह पत्नी के कमाए पैसों पर पति ही अधिकार जताता है. वे पैसे कहां जमा और खर्च होंगे यह पति ही तय करता है.
नीता एक स्कूल टीचर है. वह कहती है कि मैं ने कभी भी बेतुके कपड़े नहीं पहने. लेकिन फिर भी मेरा पति मेरे पहनावे को ले कर मुझे रोकताटोकता रहता है. वह मेरे जीवन में हर चीज नियंत्रण करने की कोशिश करता है. यहां तक कि अगर कभी घर आने में जरा लेट हो जाए तो सवालों की झड़ी लगा देता है, जैसे मैं कुछ गलत कर के आई हूं. किसी काम को ले कर कोई मेल टीचर का मैसेज या फोन आ जाए तो मुंह बना लेता है. वह मेरे मैसेज और मेल चैक करता है. मेरे कमाए पैसों पर भी हक जताता है यह कह कर कि ये पैसे वह सही जगह लगाएगा.
पहले तो मुझे लगता था वह मुझे प्यार करता है, मेरी केयर करता है लेकिन अब समझ में आने लगा कि वह मेरे जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश करता है. कैसे बताऊं कि मैं उस की गुलाम नहीं हूं और न ही वह मेरा मालिक और न ही वह मेरे जीवन को नियंत्रित कर सकता है. उसे यह बात कैसे बताऊं कि मेरा अपना दिमाग और व्यक्तित्व है. मुझे उस के सलाह की कोई जरूरत नहीं है. मैं अपने कमाए पैसे संभाल सकती हूं. लेकिन चाह कर भी कुछ इसलिए नहीं बोल पाती कि बेकार में घर में झगड़े होंगे. मेरी 2 छोटी बेटियां हैं, उन पर हमारे झगड़ों का नैगेटिव असर पड़ेगा.
कोर्ट तक पहुंचा मामला
एक पति अपनी पत्नी को सरकारी नौकरी छोड़ कर भोपाल में अपने साथ आ कर रहने के लिए मानसिक तौर पर परेशान करने लगा. पति वहां भोपाल में अपने घर पर रह कर जौब की तैयारी कर रहा था और चाहता था कि उस की पत्नी अपना जौब छोड़ कर उस के पास भोपाल आ कर रहे. पति का कहना था कि भोपाल में उसे कोई दूसरी नौकरी मिल ही जाएगी. जबकि पत्नी अपनी इतनी अच्छी सरकारी नौकरी नहीं छोड़ना चाहती थी. दोनों के बीच बात इतनी बढ़ गई कि मामला कोर्ट तक पहुंच गया. जहां कोर्ट ने पत्नी के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि पति या पत्नी एकसाथ रहना चाहते हैं या नहीं, यह उन की अपनी इच्छा होनी चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि पत्नी को नौकरी छोड़ने और उसे पति की इच्छा एवं तौरतरीके के अनुसार रहने के लिए मजबूर किया जाना क्रूरता की श्रेणी में आता है.
पुरुष क्यों महिला को कंट्रोल में रखना चाहते
भारतीय परिवार में जब एक बेटी का जन्म होता है तब से ही परिवार और रिश्तेदार यह कहने लग जाते हैं कि बेटी हुई है अब इस की परवरिश अच्छे से करनी पड़ेगी. बेटी घर की इज्जत होती है, घर की इज्जत खराब न हो इसलिए बेटी को कंट्रोल में रखने की जरूरत है. शादी के बाद भी पति उसे अपने कंट्रोल में रखने की कोशिश करता है. चाहे पिता का घर हो या पति का, देखा गया है कि महिलाओं को कंट्रोल करने की कोशिश की जाती है. वह क्या पहनेगी, कहां जाएगी, ये सब घर के मर्द ही डिसाइड करते हैं.
रामायण में भी सीता के लिए एक लक्ष्मण रेखा खीची गई थी और कहा गया था कि वह इसे पार न करे. आज भी कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया है. कहने को तो औरतों को आजादी मिली, उन्हें उड़ने के लिए आकाश दिया गया लेकिन कहीं न कहीं उन के पंखों को बांध दिया गया ताकि वे अपनी हद पार न कर सकें. यानी एक औरत अपनी मरजी से एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकती है. हर चीज उसे घर के मर्दों से पूछ कर करनी होगी. अगर नहीं किया तो सजा मिलेगी जैसे सीता को मिली.
एक औरत क्या पहनेगी क्या नहीं, यह बात क्या उसे दूसरे लोग बताएंगे? क्या एक औरत अपनी जिंदगी अपनी मरजी से नहीं जी सकती है? क्यों उसे हर बात घर के मर्दों से पूछ कर करनी पड़ती है? यहां तक कि वह अपनी पसंद के कपड़े तक नहीं पहन सकती? कपड़ों को लेकर मर्द दुहाई देते हैं कि जमाना खराब है. लेकिन जमाना किस ने खराब किया? मर्दों ने ही न? उस की वजह से ही औरतें रात के समय घर से बाहर नहीं निकल सकती हैं, खुल कर जी नहीं सकती हैं. यहां तक की अपनी पसंद के लड़के से शादी तक नहीं कर सकतीं.
बिहार के रोहतास जिले में अपनी पसंद के लडके से शादी करने पर गुस्साए पिता और भाई ने लड़की की कुलहाड़ी से हत्या कर दी. ऐसे कितने ही मामले सुनने और देखने को मिलते हैं जहां अपनी पसंद के लड़के से शादी करने पर पिता और भाई ही लड़की की हत्या कर देते हैं क्योंकि उन के लिए बेटी की खुशियों से ज्यादा अपनी इज्जत प्यारी होती है.
मगर मर्दों के लिए कोई ऐसा रूल नहीं है. वे जो चाहे पहन सकते हैं, जहां चाहें, जब चाहें जाआ सकते हैं, जिस से चाहे शादी कर सकते हैं और छोड़ सकते हैं. उन के ऐसे कदमों से घर की इज्जत को ठेस नहीं पहुंचती है. अपने घर में, पासपड़ोस या रिश्तेदारों में देख लीजिए, घर के सारे फैसले पुरुष ही लेते हैं. शादी के बाद लड़की जौब करेगी या घर संभालेगी, बच्चा कब और कितने पैदा करेगी, मायके जाएगी तो कितने दिन रुकेगी आदि बातें पति और ससुराल वाले ही डिसाइड करते हैं.
कोई लड़की अपने मायके आना चाहे तो यहां भी उसे समझाइश के सिवा कुछ नहीं मिलता है. मायके वाले भी यही कहते हैं कि हम ने तुम्हारी शादी कर दी है, अब तुम्हारा पति ही डिसाइड करेगा कि तुम्हें नौकरी करनी है या नहीं. अरे, पति है वह तुम्हारा, एक थप्पड़ मार ही दिया तो क्या हो गया. थोड़ा एडजस्ट करने में क्या हरज है? थोड़ा सह लेगी तो क्या चला जाएगा तुम्हारा? ये सब सलाहें मां अपनी बेटी को देती है क्योंकि शुरू से वह भी यही सब सहती आई है. शायद इसलिए एक लड़की अपनी ससुराल में हिंसा की शिकार होती है क्योंकि शादी के बाद उस का मायका भी अपना नहीं रहता.
नियंत्रण संबंधों में दरार लाता है
नियंत्रित संबंधों का अनुभव कभी सुखद नहीं होता है. हालांकि ज्यादातर औरतें अभी भी यह समझ नहीं पाती हैं कि वे एक नियंत्रित रिश्ते में हैं. वे यह बात स्वीकार ही नहीं कर पातीं कि उन के साथी का व्यवहार नियंत्रणकारी और हानिकारक है. उन्हें अपने पार्टनर का ऐसा व्यवहार अकसर देखभाल, सुरक्षात्मक, परवाह करने जैसा लगता है. लेकिन ऐसे लोग अकसर देखभाल या चिंता की आड़ में अपने साथी के जीवन पर अपना अधिकार जता रहे होते हैं जो समय के साथ बद से बदतर होता जाता है.
मनोवैज्ञानिक के अनुसार, कुछ पुरुष पत्नियों पर नियंत्रण करके सुरक्षा और स्थिरता की भावना प्राप्त करने की कोशिश करते हैं. जो पुरुष असुरक्षित महसूस करते हैं, वे पत्नियों पर नियंत्रण कर के अपनी कमियों को पूरा करने की कोशिश करते हैं. वहीं कुछ पुरुषों की पत्नियों पर अपनी पसंदनापसंद थोपने की आदत होती है. वे बेमतलब अपनी बात मनवाने की कोशिश करते हैं और चाहते हैं कि पत्नी वैसा ही करे जैसा वे कह रहे हैं.
आज कई महिलाएं स्ट्रैस और ऐंग्जायटी की शिकार बन रही हैं. वे बीमारियों से जूझ रही हैं तो इसलिए क्योंकि वे अपने जीवन में खुश नहीं हैं. अपनी इच्छाओं को मार कर सब को खुश रखने की कोशिश में लगी रहती हैं. घर और औफिस दोनों की जिम्मेदारी निभा रही हैं, लेकिन उस पर भी उन्हें यही सुनने को मिलता कि छोड़ दो न नौकरी, किस ने कहा करने को. कौन सा एहसान कर रही हो नौकरी कर के.
आज भी समाज और परिवारों में पुरुषों को ही घर का मुखिया माना जाता है और यही मानसिकता महिलाओं पर अपनी बात थोपने को सही ठहराती है. पुरुष बचपन से ही अपने परिवार में यही देखते बड़े होते हैं, जहां उन के घर की औरतें मर्दों के बताए रास्ते पर चलती हैं तो उन्हें ये सामान्य बातें लगती है.
एक शोध से पता चलता है कि रिश्तों में नियंत्रणकारी व्यवहार घरेलू दुर्व्यवहार का एक महत्त्वपूर्ण पूर्वानुमान है. भावनात्मक नियंत्रण शारीरिक हिंसा जितना ही हानिकारक हो सकता है.
महिलाएं शिक्षित होते हुए पुरुषों से पीछे
देश में महिला सशक्तीकरण पर कई योजनाएं और प्रयास चल रहे हैं. फिर भी कौरपोरेट जगत में महिलाओं की भागीदारी बेहद सीमित है. हाल की रिपोर्ट्स के अनुसार, देश में सी सूट यानी सीईओ, सीएफओ, सीओओ जैसे शीर्ष पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी केवल
17 से 19त्न ही है. यह आंकड़ा लैंगिग समानता की दिशा में गंभीर चिंताओं का विषय है.
क्या है सी सूट
सी सूट उन शीर्ष पदों को कहा जाता है, जिन में चीफ ऐग्जिक्यूटिव औफिसर, चीफ फाइनैंशियल औफिसर, चीफ औपरेटिंग औफिसर आदि शामिल होते हैं. ये पद किसी भी संगठन की रणनीति दिशा तय करते हैं, महत्त्वपूर्ण निर्णयों के केंद्र में होते हैं.
अस्तित्व और अधिकार के प्रति सजग
दुनिया के हर हिस्से में बसे लोगों को अपने इंसानी अधिकारों को पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. पर महिलाओं को अपने अधिकार पाने के लिए ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है.
आज की नारी नहीं है बेचारी
महिला कभी भी कमजोर नहीं रही बल्कि उसे कमजोर बनाया गया. लेकिन अब समय आ गया है कि आप यह खुद फैसला करें कि आप क्या खाना और पहनना चाहती हैं? आप पर क्या अच्छा लगता है और किस के साथ आप खुश हैं? अपने जीवन में किसी की दखलंदाजी सहन न करें, चाहे वह आदमी आप का पति ही क्यों न हो. आप जौब करना चाहती हैं, जौब करें, जैसे कपडे़ पहनना चाहती हैं, पहनें. अपने दोस्त और परिवार से मिलने जाएं, भले ही इस के लिए आप का पति गुस्सा हो जाए, परवाह न करें. लाइफ में बिजी रहने की कोशिश करें. सकारात्मक लोगों के करीब रहें और नकारात्मक लोगों से दूरी बना कर रखें.
अगर फिर भी पति बारबार आप को रोकताटोकता है तो उसे अच्छे से समझा दें कि आप में भी दिमाग है. आप को पता है कि आप के लिए क्या सही है और क्या गलत. अपने अनुसार जीने में कोई बुराई नहीं है. इस से आप कमजोर नहीं दिखता बल्कि इस से यह पता चलता है कि आप अपने फैसले लेने में सक्षम हैं और अपने फैसले खुद ले सकती हैं.
हमेशा शांत रहते हुए बात करें. अच्छीअच्छी किताबें पढ़ें, अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें. ध्यान और मैडिटेशन का रोज अभ्यास करें. इस से मन शांत रहेगा और आप खुद को स्ट्रौंग महसूस करेंगी. दोस्तों और परिवार के साथ घूमने जाएं.
एक ऐसे भविष्य की कल्पना करें जहां आप अपने सपनों और इच्छाओं के आधार पर निर्णय ले सकें. आप विचार करें कि आप वास्तव में एक रिश्ते में क्या चाहती हैं और क्या पाने की हकदार हैं? आप अपनी सेहत और खुशियों को प्राथमिकता दें, न कि दूसरों की.
डा. जानगौटमैन, जो रिश्तों के बड़े विशेषज्ञ माने जाते हैं, कहते हैं कि मजबूत रिश्ते विश्वास, सम्मान और भावनात्मक समझ पर टिके होते हैं. रिश्तों में आलोचना, तिरस्कार, रक्षात्मकता और चुप्पी साधना ये 4 सब से खतरनाक आदतें होती हैं जो रिश्ते को बरबाद करती हैं. वहीं थेरैपिस्ट एस्थरपेरेल कहती हैं कि शादी में स्वतंत्रता और जुड़ाव के बीच संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है.
जब पतिपत्नी दोनों में से किसी की अपेक्षाओं को नजरअंदाज किया जाता है, उस पर किसी काम को ले कर दबाव डाला जाता है तो रिश्तों में दूरियां बढ़ने लगती हैं. शादी करने के बाद पति का पत्नी पर मालिकाना हक नहीं हो जाता कि वह जो कहे पत्नी को करना होगा. रिश्तों में सम्मान देंगे तभी सम्मान पाएंगे भी.
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