Teenage Life: ‘‘तितली की तरह उड़ना, झरनों की तरह बहना चाहती हूं,
सितारों की बुलंदी छूना चाहती हूं पर
कुछ छोटेछोटे सवाल सालते हैं मुझे,
जिन के जवाब हर हाल में पाना चाहती हूं,
इतने पहरे, इतने बंधन क्यों हैं आखिर?
मैं पूछना चाहती हूं. मैं पूछना चाहती हूं.’’
यह आवाज आती है हर जवां होती लड़की के दिल से...
उम्र का बहुत ही नाजुक मोड़ है यह. शुरूशुरू में शारीरिक बदलाव को मन स्वीकार नहीं करता. लगता है मानो आजादी छिन गई हो. अपने मन की बात शेयर करें तो किस से करें. मन है कि ठहर नहीं पाता और दिमाग सवालों के घेरे में उल झ जाता है. क्या, कब, क्यों, कैसे जैसे अनेक सवाल मन को कुरेदते हैं और सही मार्गदर्शन के अभाव में एक सामान्य सहज प्रक्रिया के तहत सवालों के अपने तरीके से इंटरप्रिटेशन निकलने लगते हैं. यह महसूस होने लगता है कि हम भी कुछ कर सकते हैं. खुद निर्णय लेने की चाह होने लगती है और यकीन भी हो जाता है कि यह सही होगा.
10 से 16 वर्ष की उम्र जीवन का एक ऐसा पड़ाव जब शरीर का गठन शुरू होता है अनेक तरह के बदलाव होने लगते हैं. शारीरिक बदलाव के साथसाथ मानसिक उथलपुथल भी जारी रहती है. लड़कियों में यह बदलाव लड़कों से ज्यादा जल्दी आते हैं अर्थात व लड़कों की तुलना में जल्दी जवान होती हैं.
‘‘मेरी उम्र 13 साल है. कुछ दिनों पहले एक सुबह मैं जब बिस्तर से उठी तो मैं ने कुछ अलग महसूस किया. मेरा लोअर खराब था. चादर पर भी लाल धब्बे थे. मां ने देखा तो बोली, ‘‘चादर उठा कर धोने डाल दे.’’
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