फोन आया तो लोगों का मिलना जुलना कम हुआ. लेकिन इससे लोगों के बीच दोस्तियां कम नहीं हुईं. इंटरनेट आया और उसके बाद वीडियो काॅलिंग तो मिलने जुलने की तकरीबन जरूरत ही खत्म हो गई. मगर इससे भी न तो लोगों का सदेह एक दूसरे से मिलना जुलना खत्म हुआ और न ही दोस्ती की जरूरत को वीडिया काॅलिंग दरकिनार कर पायी. लब्बोलुआब यह है कि दोस्ती जैसी भूमिका निभाने के लिए भले कितनी ही कम्युनिकेबल तकनीकें विकसित हो गई हों, लेकिन दुनिया में न तो दोस्त खत्म हुए हैं और न ही दोस्ती की जरूरत खत्म हुई है. शायद इसी आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि भविष्य में भी कमी दोस्ती की जरूरत या दोस्तों का होना खत्म नहीं होगा. सवाल है इसकी वजह क्या है? निश्चित रूप से इसकी वजह है साइंस औफ फ्रेंडशिप.

दोस्ती महज दो लोगों के संयोग से एक दूसरे के प्रति अच्छे भाव रखने और एक दूसरे के साथ सकारात्मक व्यवहार का नाम भर नहीं है. लोगों में दोस्ती की एक बड़ी स्वभाविक जैविक जरूरत होती है. कहने का मतलब यह है कि दोस्ती महज इच्छाभर का खेल नहीं है. इसके पीछे पूरी वैज्ञानिक प्रक्रिया है. दोस्ती शरीर की रासायनिक गतिविधियों का हिस्सा भी है. इसलिए दोस्तियां तब भी थीं, जब हम दोस्ती जैसी भावना को व्यक्त कर पाने में असमर्थ थे और दोस्तियां तब भी होंगी जब हममें इस तरह की किसी भावना की जरूरत नहीं रह जाएगी. चाहे कोई इंसान कितना ही आत्मनिर्भर क्यों न हो जाए, चाहे वह कितना ही प्रोफेशनल ही क्यों न हो जाए? लेकिन जीवन में हर किसी के लिए कम से कम एक दोस्त का होना जरूरी होता है.

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