अगर इस संसार में कुछ स्थिर है तो वह है धर्म. इस का राग अलापते रहने वाले पंडेपुजारियों को अब समझ में आ रहा है कि अगर धार्मिक कर्मकांडों के जरिए मलाई चाटते रहना है तो धार्मिक सिद्धांतों में बदलाव करने पड़ेंगे वरना खाने के लाले पड़ सकते हैं. धर्म के कारोबार में अब आम कारोबारों की तरह संशोधन होने लगे हैं. ऐसा करने के पीछे कोई धार्मिक निर्देश या उदारता नहीं, बल्कि धर्म के दुकानदारों के आर्थिक स्वार्थ हैं.

पैसा कमाने के लिए धर्म के धंधेबाज कैसेकैसे गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं इस की एक और बेहतर और दिलचस्प मिसाल गत 4 सितंबर को मध्य प्रदेश के सुसनेर में देखने में आई. यहां के एक निवासी लक्ष्मीनारायण की 42 साल की उम्र में 22 अगस्त को मौत हो गई थी. हिंदू धर्म का प्रचलित और मान्य सिद्धांत यह है कि मुखाग्नि बेटा ही देता है. चूंकि लक्ष्मीनारायण व्यास को कोई बेटा नहीं था, इसलिए ब्राह्मण समाज ने दरियादिली दिखाते यह जिम्मेदारी उन की बेटियों नेहा, वैष्णवी और प्रथा को सौंप दी.

आजकल ये खबरें बेहद आम हो चली हैं कि बेटी ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी. लेकिन सुसनेर में इन बेटियां को 12वीं के दिन पगड़ी बांध कर घर का मुखिया घोषित कर दिया गया. कहा यह गया है कि यह एक नई परंपरा की शुरुआत है, जिस के तहत जिन के बेटे नहीं हैं अब उन की बेटियां मृत्यु पर बेटों द्वारा किए जाने वाले रीतिरिवाज निभाएंगी. इस से समाज में बेटियों का महत्त्व बढ़ेगा.

निशाने पर बेटियां

इस फैसले या नई परंपरा के माने ये हैं कि अब धर्म लड़कियों से पहले जैसा परहेज नहीं करेगा. लेकिन उन्हीं घरों में जिन के बेटे नहीं हैं अगर बेटा है तो बेटियों को यह अधिकार नहीं दिया जाएगा.

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