Women Rights : हर शहर में एक बदनाम औरत होती है. अकसर वह पढ़ीलिखी प्रगल्भ तथा अपेक्षाकृत खुली हुई होती है,’’ ये पंक्तियां हिंदी के प्रसिद्ध कवि विष्णु खरे की कविता से ली गई हैं. ये बहुत ही सटीक तरीके से पढ़ीलिखी महिलाओं के प्रति हमारे समाज की मानसिकता को बयां करती हैं. यह समाज महिलाओं को अपनी सुविधा के अनुसार कितनी ही बातें सिखाता है. उन्हें बताया जाता है कि किचन में रहोगी, अच्छाअच्छा खाना सब के लिए बनाओगी सब तुम से खुश रहेंगे, तुम्हारी इज्जत करेंगे. काफी महिलाएं इस तरह अपना सारा जीवन परिवार के लिए जी कर निकाल देती हैं.

आजकल थोड़ा, बदलाव यह हुआ है कि मनोरंजन के लिए वे इंस्टा पर रील्स देख लेती हैं, नईनई रैसिपीज के लिए यूट्यूब देख कर खुश हो जाती हैं. किताबें उन के हाथ से छूट चुकी हैं, पढ़नेलिखने का महत्त्व उन के लिए उतना नहीं रहा तो वे अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को इग्नोर करने की कोशिश करती हैं और उन्हें अपने अधिकार पता ही नहीं हैं. सही तरह से पढ़नेलिखने के शौक, रुचि के बिना उन्हें अपने अधिकारों से कितनी चीजों से, वंचित रखा जाता है, यह उन्हें भी नहीं पता.

अधिकारों के प्रति सजग

यूनेस्को के अनुसार, लड़कियों में माध्यमिक शिक्षा को छोड़ने का बड़ा कारण उन की कम उम्र में शादी और उन का गर्भवती होना है. कम पढ़ालिखा होना उन की मैंटल हैल्थ पर भी बुरा असर डालता है. हमारे आसपास ऐसी कितनी लड़कियां हैं जिन की शादी उन के पेरैंट्स बहुत जल्दी करवा देते हैं. कारण पूछने पर जवाब मिलता है, जमाना बहुत खराब है. कुछ अनहोनी हो, उस से पहले यह काम हो जाए.
समाज में महिलाओं के खिलाफ जिस तरह अत्याचार बढ़ रहे हैं उन का इलाज पेरैंट्स को यही समझ आता है कि लड़की की शादी जल्दी कर के उस की आजादी को छीन कर अपनी जिम्मेदारी खत्म की जाए. उस से पूछा भी नहीं जाता कि तुम्हें आगे पढ़ कर अपने पैरों पर खड़े होना भी है या नहीं, जीवन जीने के लिए अपने अधिकार जानने भी हैं या नहीं.

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