14 हजार फुट की उंचाई पर चारों तरफ मीलों बर्फ फैली हुई- 15-20 के तापमान में एक अकेला फौजी सरहद की रक्षा करता है, परिवार और अपनों से दूर यह फौजी जानता नहीं है कि वह अपने साथ खड़े फौजी को भी अगले दिन के सूरज के उगते ही देख सकेगा या नहीं. ऐसी कठिन परिस्थितियों में रहते है हमारे देश की लाइन औफ कंट्रोल यानी एलओसी पर रहने वाले जवान, जो देश की रक्षा में अपनी जान की बाजी लगा कर दिनरात खड़े रहते हैं.

ऐसी ही कई दृश्यों को नजदीक से देखा और अनुभव किया है नौसेरा, पुंज, राजौरी, सुरनकोट सैक्टर में पोङ्क्षस्टग पर रहीं महाराष्ट्र की मेजर डा. आश्लेषा तावडे केलकर ने. वे आज भी इन बातों का जिक्र करते हुए भावुक हो उठती हैं.

लाइन औफ कंट्रोल पर काम करने के बाद वे रिटायर्ड हो चुकी हैं और अभी महाराष्ट्र के रायगढ़ के सभी तालुका और पालघर जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्र में अपनी संस्था ‘आनंदी फाउंडेशन’ के तहत कुपोषण पर काम कर रही है. उन के इस काम के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं.

आश्लेषा की इस जर्नी में उन के पति आदित्य केलकर और बेटी आनंदिता आदित्य केलकर का साथ रहा है. इस के अलावा सास अधिवक्ता विनया केलकर और ससुर विश्वास केलकर ने भी उन्हें प्रेरित किया है.

मिली प्रेरणा

वे कहती हैं, ‘‘मैं ने मराठी स्कूल में पढ़ाई की है. वहां पर मेरे सीनियर विनायक गोरे थे. वे फौज में थे और कारगिल की लड़ाई में शहीद हुए थे, उन की मां मेरे स्कूल की अध्यापिका थीं वही मेरी प्रेरणा रहीं. मैं बचपन से ही पढ़ाई में बहुत प्रतिभावान थी. मैं ने मैडिकल की ऐंट्रैंस परीक्षा पास की, दाखिला लिया और पढऩे लगी. मेरे पिता अशोक तावडे और मेरी मां अदिति तावडे ने हमेशा सहयोग दिया. फौज में जाने के लिए परिवार का सहयोग बहुत जरूरी होता है. परिवार की अकेली लडक़ी होने के बावजूद परिवार वालों ने मुझे फौज में जाने से कभी मना नहीं किया. मैडिकल की पढ़ाई खत्म करने के बाद पिता ने ही फौज में जाने की सलाह दी और 26 फरवरी, 2009 मेरी कमिशङ्क्षनग की तारीख थी, जब मैं औफिसर बनी और मेरे कंधे पर स्टार लगा.’’

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