Zoya Akhtar : जोया अख्तर जब बचपन के बारे में सोचती हैं तो उन्हें उस वक्त देखी गई फिल्मों का ही खयाल आता है. जिस घर में उन का बचपन बीता उसे अकसर एक अस्थाई थिएटर में बदल दिया जाता था. वहां एक बड़ा सा प्रोजैक्टर हुआ करता था. एक दीवार थी जो स्क्रीन का काम करती थी और हर 20 मिनट में होने वाला एक ब्रेक.
ब्रेक में प्रोजैक्टर पर चल रही फिल्म की रील बदली जाती थी. यहीं पर जोया ने पहली बार शम्मी कपूर द्वारा निर्देशित फैंटेसी कौमेडी फिल्म ‘बंडल बाज’ देखी थी. यह 1976 में उन के जन्म के कुछ साल बाद रिलीज हुई थी. इसी घर में एक नन्ही जोया ने झपकी लेते हुए अमेरिका की क्लासिक गैंगस्टर फिल्म ‘द गौडफादर’ देखी थी. यह फिल्म अमेरिका में रिलीज होने के आधे दशक बाद भारत में रिलीज की गई थी.
बचपन में जोया इस स्क्रीनिंग की अहमियत नहीं समझ पाई थीं. इस की अहमियत का पता उन्हें बहुत बाद में चला, जब उन के पिता ने उन्हें दोबारा रूबरू कराया. उन के पिता यानी गीतकार और फिल्मों में पटकथा लेखक जावेद अख्तर. जिस रात इस फिल्म की कौपी मुंबई पहुंची उस के अगले दिन फिल्म में कट लगाए जाने थे ताकि उसे थिएटर में रिलीज किया जा सके.
फिल्म के रिलीज के लिए जिस व्यक्ति को इस की कौपी मिली थी उस ने उसे सीधे जावेद अख्तर के घर भेज दिया. जावेद और हनी ने अपने दोस्तों को घर बुलाया. जगह कम न हो इस के लिए घर का फर्नीचर तक हटा दिया. उस रात यह फिल्म 2 बार देखी गई. इस की वजह यह थी कि अगले दिन फिल्म में कट लग जाने के बाद वह अपने मूल रूप में नहीं रहने वाली थी.
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