कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘हां, हो गया, तो तुम्हें क्या? तुम क्यों इतनी जानकारी ले रहे हो?’’ मैं ने गुस्से से भर कर कहा तो वह क्षणभर के लिए चुप हो गया, फिर कहने लगा कि वह किसी गलत इरादे से नहीं पूछ रहा है. फिर खुद ही बताने लगा कि अब वह दिल्ली में रहता है अपने पिता के साथ. मुझ से पूछा कि मैं कहां हूं अभी? तो मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘यहीं दिल्ली में ही.’’ कहने लगा वह मुझ से मिलना चाहता है. जब मैं ने मिलने से मना कर दिया तो कहने लगा कि वह मुझे अपने बारे में कुछ बताना चाहता है.

‘‘पर मुझे तुम्हारे बारे में कुछ सुननाजानना नहीं है और वैसे भी, मैं अभी कहीं बाहर हूं,’’ कह कर मैं ने उस का जवाब सुने बिना ही फोन काट दिया. और वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई. पिछली बातें चलचित्र की तरह मेरी आंखों के सामने चलने लगीं.

उस साल मैं ने भी उसी कालेज में नयानया ऐडिमिशन लिया था जिस में अखिल था. लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह मेरी ही सोसायटी में रहता है, क्योंकि पहले कभी मैं ने उसे देखा नहीं था. एक दिन औटो के इंतजार में मैं कालेज के बाहर खड़ी थी कि सामने से आ कर वह कहने लगा कि अगर मैं चाहूं तो वह मुझे मेरे घर तक छोड़ सकता है. जब मैं ने उसे घूरा, तो कहने लगा. ‘डरो मत, मैं तुम्हारी ही सोसायटी में रहता हूं. तुम वर्मा अंकल की बेटी हो न?’ फिर वह अपने बारे में बताने लगा कि वह उदयपुर में अपने चाचा के घर में रह कर पढ़ाई करता था. लेकिन अब वह यहां आ गया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...