‘‘हैलो.’’

‘‘बोलो.’’

‘‘सुनो.’’

‘‘सुनाओ.’’

‘‘एक खुशखबरी है.’’

‘जल्दी कहो.’’

‘‘उस के बदले में क्या दोगी?’’

‘‘जो बोलोगे.’’

‘‘पक्का?’’

‘‘पक्का. अब बोल भी दो. हमेशा सौदेबाजी करते हो. व्यापारी बाप के बेटे जो हो.’’

‘तुम्हारा पासपोर्ट है न?’’

‘‘प्लीज रमन पहेलियां मत बुझाओ. जल्दी से बताओ.’’

‘‘अच्छा गैस करो क्या बात हो सकती है. अब तो मैं ने हिंट भी दे दिया है.’’

‘‘बाहर घुमाने ले कर जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां, डार्लिंग, हमारी तो लौटरी निकल आई है. कंपनी मुझे 6 महीने के लिए लंदन भेज रही है.’’

‘‘सच, कहीं तुम मुझे बेवकूफ तो नहीं बना रहे? इतनी अच्छी खबर सुना कर अगर बेवकूफ बनाया तो मैं तुम से बात नहीं करूंगी.’’

‘‘नहीं, मैं सच बोल रहा हूं. अगले महीने की 10 तारीख को वहां रिपोर्ट करनी है. जरा अपना पासपोर्ट निकाल कर देख लो, कहीं ऐक्सपायर तो नहीं हो गया है.’’ मीता तो फोन रख कर वहीं कुरसी पर धम से बैठ गई. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो कुछ भी उस ने फोन पर सुना वह सच है. ,लंदन जाने का उस का सपना बहुत पुराना था. लोग जब भी विदेश जाने की बात करते, तो उस के लिए विदेश का मतलब केवल और केवल लंदन जाना होता था. स्कूल में उस की एक पक्की सहेली होती थी. उस के पापा का ट्रांसफर एक बार कंपनी की तरफ से लंदन हो गया था. वह उन के साथ 1 साल के लिए लंदन चली गई थी और जब वहां से लौट कर आई थी तो कितने मजे ले कर पूरे लंदन को देखने की बात उस ने बताई थी. उस ने इस अनुभव को इतनी बार सुना था कि सहेली का यह अनुभव उसे अपना अनुभव लगने लगा था. उस ने भी लंदन देखने का सपना बहुत बार देखा था. आज की बात से उसे सपना साकार होता नजर आ रहा था. मीता और रमन के विवाह को अभी 3 साल ही हुए थे. अभी तक परिवार बढ़ाने की बात उन्होंने नहीं सोची थी. आज मीता को लग रहा था कि अच्छा ही हुआ कि उन के यहां कोई बच्चा अभी नहीं था. वह आराम से घूम सकती थी. वह एक कोचिंग सैंटर में नौकरी करती थी और वह कभी भी काम छोड़ सकती थी.

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