सुबह होते ही  दीप  का  मोबाइल बज  उठा, ‘‘हाय जीजू, कैसे हो? रात कैसी थी? दीदी सो रही हैं या नहीं. आप ने उन्हें सोने भी दिया या नहीं?’’

‘‘बसबस, सवाल ही पूछती रहोगी या कुछ जवाब भी देने दोगी,’’ दीप ने बीना से कहा, बीना उस की नईनवेली पत्नी शिखा की लाड़ली बहन है. ‘‘लो बहन से ही पूछो. मैंने सबकुछ कह दिया तो तुम दोनों ही शरम से लाल हो जाओगी.’’

शिखा और बीना की बातें शुरू हुईं तो लगा मानो वर्षों बाद बात हो रही है.

बीना का रिजल्ट निकला. वह पास हो गई थी. शिखा ने ही बीना को पढ़ाया था. नौकरी लगने के फौरन बाद ही शिखा ने बीना को इंजीनियरिंग कालिज में प्रवेश दिला दिया था. कालिज की पढ़ाई का भारी खर्च शिखा के ही कंधों पर था क्योंकि मां एक साधारण अध्यापिका थीं और पिता कुछ नहीं करते थे.

शिखा को तो मां ने अतिरिक्त ट्यूशन पढ़ापढ़ा कर इंजीनियरिंग का कोर्स पूरा कराया था पर बीना का बोझ शिखा ने उठा लिया था.

आज की युवा पीढ़ी की तरह मौजमस्ती से दूर केवल पढ़ाई को लक्ष्य बना कर दोनों बहनों ने सफलता प्राप्त की.

शिखा बहुत बड़ी कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर थी, उस का वेतन 20 हजार रुपए महीना था. पर देखने में वह इतनी सीधी थी कि उसे देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वह इतनी पढ़ीलिखी है और 20 हजार रुपए महीना कमाने वाली लड़की है.

शिखा देखने में सुंदर भी थी. 2 साल से उस के लिए रिश्ते आ रहे थे पर वह उन्हें टालती जा रही थी.

शिखा ने एक दिन मां से पूछ ही लिया, ‘‘मां, आप लड़के के बारे में पूछ रही थीं न, अगर दूसरी बिरादरी का लड़का होगा तो भी आप मान जाएंगी न?’’

‘‘ओह हो, तो यह बात है. मेरी रानी बिटिया को कोई भा गया है. बता, जल्दी से बता. मुझे बिरादरी अलग होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. बस, लड़का लायक होना चाहिए.’’

‘‘मां, जब एक बार मैं बीमार पड़ी थी तब आफिस के कई साथी हालचाल पूछने आए थे, उन में वह लड़का भी था. उस ने सफेद कुरतापाजामा पहना हुआ था. बाल थोड़े लंबे थे.’’

‘‘अच्छाअच्छा, तू दीप की बात कर रही है जिसे देख कर मैं ने उसे शायर की उपाधि दी थी.’’

‘‘हां, मां. हम दोनों एक ही प्रोजेक्ट पर काम करते हैं. बहुत ही अच्छा लड़का है. मेरी तरह वह भी उड़ने वाले लड़कों में से नहीं है.’’

‘‘उस की मां को पता है कि तुम दूसरी जाति की हो?’’

‘‘उस की मां को सब पता है. वह यह जानती है कि मैं हरियाणा के जाट परिवार से हूं. अब आप की तरफ से अगर हां हो तो दीप मुझे एक दिन अपनी मां से मिलवाने ले जाएगा.’’

‘‘ठीक है जब उन की तरफ से हां हो जाएगी तब हम भी उन से मिल लेंगे.’’

मां बड़ी खुश थीं. एक बड़ा बोझ उन के सिर से जैसे उतर गया हो. अगले इतवार को ही दीप शिखा को अपनी मां से मिलवाने ले गया. शिखा बहुत ही सामान्य कपड़ों में और बिना किसी मेकअप के दीप के घर उन की मां से मिलने आई थी. दीप की मां तो उसे देखते ही मुग्ध हो गई थीं. उन्हें तेजतर्रार लड़कियों से बड़ा डर लगता था.

उन के मन में एक ही इच्छा थी कि दीप को उस की तरह ही सीधी-

सादी लड़की मिले क्योंकि एक  तो वह बेहद सरल स्वभाव का था दूसरे छलकपट और दिखावे से भी बहुत दूर रहता था. बस, अपने काम की दुनिया में वह मस्त रहने वाला इनसान था.

शिखा को देख कर दीप की मां उस से बातें करने में खो गईं. दोनों की बातों में दीप जैसे अकेला पड़ गया तो वह चुपचाप उठ कर कंप्यूटर पर जा बैठा था.

पहली ही मुलाकात में शिखा ने अपने और अपने परिवार के बारे में दीप की मां को सबकुछ बता दिया था. दीप के बारे में तो वह जानती ही थी.

दीप की मां ने पहली मुलाकात में ही शिखा को अपनी बेटी के रूप में स्वीकार कर लिया तो दोनों परिवार मिले और बात आगे बढ़ी. शादी की तारीख तय हुई और फिर खरीदारी शुरू हो गई. दीप की मां ने सारी खरीदारी शिखा को साथ ले जा कर की.

इस तरह रोज की मुलाकातों में शिखा की व्यवहारकुशलता और बचत करने की आदत से भी वह परिचित हो गई थीं.

जीवन की कठिनाइयों ने शिखा को पैसे का मूल्य समझना सिखा दिया था. वह कहीं भी फुजूलखर्ची न तो खुद करती न दूसरों को करने देती थी. दीप की मां जस्सी शिखा के बारे में सोचसोच कर हैरान होती कि देखो जमाने की हवा से शिखा कितनी दूर है. इतना कमाती है फिर भी सोचसमझ कर ही खर्च करती है. जस्सी की ओर से खरीदारी पूरी हो चुकी थी. तभी एक दिन शिखा का फोन आया.

‘‘मां, आप से एक बात पूछनी है. आप बुरा मत मानना और किसी को भी बताना नहीं, यहां तक कि दीप को भी नहीं बताना.’’

‘‘क्या बात है? कोई गंभीर समस्या है क्या?’’

‘‘नहीं मां, कोईर् गंभीर बात नहीं है. पर फिर भी आप की रजामंदी के बिना मैं कुछ नहीं करूंगी.’’

‘‘अच्छा बोलो, मैं वादा करती हूं कि तुम्हारा पूरा साथ दूंगी.’’

‘‘मां शादी पर पहनने वाली ड्रेस मैं बनवाना नहीं चाहती. इधर मैं ने बाजार में सब देखा. कोई भी डे्रस 10-12 हजार रुपए से कम की नहीं है. सिर्फ एक दिन पहनने के लिए इतना पैसा बरबाद करने का मेरा मन नहीं है. क्या मैं किराए पर ले कर पहन लूं. आजकल किराए पर एक से एक बढि़या ड्रेस और साथ में मैचिंग गहने मिलते हैं. आप तो जानती हैं कि मैं दोबारा ऐसे कपड़े पहनने वाली नहीं हूं. यदि आप मेरा साथ देंगी तभी मैं यह कदम उठा सकती हूं. दूसरे दिन ही सब सामान वापस चला जाएगा.’’

‘‘तू कैसी लड़की है?’’ जस्सी ने कहा, ‘‘शादी की डे्रेस पर तो सब लड़कियां अपने पूरे अरमान निकाल लेती हैं और तू कहती है कि बनवानी ही नहीं है. बेटी, मैं पैसे देती हूं, तू अपनी पसंद की बनवा ले.’’

‘‘मां, बात पैसे की नहीं है. मेरी समझ में यह पैसे की बरबादी है. आप भी मेरी बात से सहमत होंगी.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी क्या कहती हैं?’’

‘‘वह कहती हैं कि अगर समधनजी मान जाएं तो ऐसा कर लो. मां को तो मैं ने मना लिया है, अब आप को मनाना बाकी है.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम चाहो वैसा कर लो. मुझे कोई आपत्ति नहीं है और यह रहस्य मेरे तक ही सीमित रहेगा.’’

‘‘थैंक्यू मां,’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया.

जस्सी के मन में अब शिखा के लिए आदर का भाव और भी बढ़ गया. उस ने सोचा कि देखो शिखा कितना सोचती है अपने परिवार के बारे में. बेकार में पैसा उड़ाने में विश्वास नहीं रखती है. कल को पति के घर को भी अच्छे से संभाल लेगी.

शादी का दिन आ पहुंचा. गुलाबी रंग के लहंगेचुनरी में शिखा का सौंदर्य निखर उठा था. गहने उस की सुंदरता को और भी बढ़ा रहे थे. शिखा की डोली विदा हो कर दीप के घर आ गई थी. सब तरह के रीतिरिवाजों से निबट कर जब आराम करने के लिए शिखा अपने कमरे में जाने लगी तो उस ने अपनी सास को इशारे से कमरे में बुला लिया. बहुत ही ध्यान से शिखा ने कपड़े उतार कर अटैची में बंद किए. सब गहने उतार कर डब्बे में रखे. इस काम में जस्सी ने शिखा की मदद की. बहुत ही ध्यान से दर्जनों सेफ्टीपिन लहंगे और चुनरी से निकाले. सबकुछ सहेज कर रखने के बाद शिखा ने राहत की सांस ली और अपनी सास को एक बार फिर दिल से थैंक्यू कहा.

सास ने प्यार से उसे बांहों में भर लिया और बोलीं, ‘‘बेटी, जैसे तुम ने अपने मायके का पूरा ध्यान रखा है उसी तरह से ससुराल का भी ध्यान रखना.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है मां. अब तो यह मेरा घर है. मेरी जान इसी पर न्योछावर है.’’

रात होतेहोते दीप के दोस्तों और मौसेरे, चचेरे भाईबहनों ने मिल कर बोलना शुरू किया, ‘‘अरे दीप, किस होटल में कमरा बुक किया है. चलो, तुम दोनों को छोड़ आएं.’’

‘‘हम अपनेआप चले जाएंगे, तुम लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

घर मेहमानों से भरा हुआ था क्योंकि वह 2 कमरों का एक छोटा सा फ्लैट था. दीप भी जानता था कि समाज के रिवाज के अनुसार उसे शिखा को ले कर किसी होटल में जाना ही पड़ेगा, अन्यथा आज की सोच वाले उस के दोस्त उस का पीछा नहीं छोड़ेंगे. रात के 10 बज चुके थे, दीप और शिखा ने सब को ‘बाय’ किया और अपनी कार में घर से चल दिए. रास्ते में शिखा ने दीप से पूछा कि होटल के कमरे में कितने रुपए लगेंगे?

‘‘पांचसितारा होटल में 5 हजार, तीनसितारा होटल में 3 हजार और एक सितारा होटल में 1 हजार रुपए. तुम बोलो कि तुम्हें कहां चलना है, पैसे का प्रबंध मैं ने कर रखा है.’’

‘‘और कंपनी के गेस्ट हाउस के कमरे के कितने?’’

‘‘मुफ्त. केवल 100 रुपए चौकीदार को टिप के रूप में देने पड़ेंगे.’’

‘‘तो चलो वहीं चलते हैं.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है. लोग क्या कहेंगे?’’

‘‘मेरा दिमाग बिलकुल ठीक है,’’ शिखा बोली, ‘‘मैं लोगों की चिंता नहीं करती. पैसे की बरबादी मैं नहीं करती, यह तुम अच्छे से जानते हो.’’

‘‘यह रात फिर कभी नहीं आएगी. बाद में ताना मत मारना कि मैं कंजूस हूं.’’

‘‘नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा,’’ इतना कह कर शिखा ने धीरे से दीप के हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

दीप ने कार गेस्ट हाउस की दिशा में मोड़ दी. रात बहुत हो चुकी थी फिर भी सड़क के किनारे एक फूल वाला अपने फूल समेटने की तैयारी में था. दीप ने कार रोकी और उस के सारे गुलाब के फूल खरीद लिए. दीप जानता था कि शिखा को गुलाब के फूल बहुत अच्छे लगते हैं.वह सप्ताह में एक दिन गुलाब के फूलों का एक गुच्छा खरीद कर घर ले जाती थी और उन्हें ही सहेज कर हफ्ता निकाल देती थी.

कार गुलाबों से महक उठी. गेस्ट हाउस के उस कमरे को दोनों ने मिल कर सजाया. दोनों के दिलों में प्यार की महक थी इसलिए वह साधारण सा कमरा भी किसी पांचसितारा होटल से अधिक सुंदर लग रहा था. दोनों एकदूसरे की बाहों में खो गए थे.

सुबह होते ही घर जाने की तैयारी हुई. शिखा बहुत ही खुश नजर आ रही थी. दीप ने पूछा, ‘‘क्या बात है बहुत खुश हो.’’

‘‘हां, वो तो है. मैं बहुत खुश हूं क्योंकि आज मैं दीपशिखा बन गई हूं.’’

‘‘दीप भी तो शिखा के बिना अधूरा था,’’ दीप बोला, ‘‘चलो, अब दीपशिखा मिल कर चलें,’’ शिखा हसंती हुई बोली.

शिखा का खिला हुआ चेहरा देख कर जस्सी ने उसे गले से लगा लिया था. शिखा की खुशी का एक और राज भी था जिसे उस ने मां को नहीं बताया था. पहले दिन से उस ने अपने घर की सुरक्षा का बीमा अपने हाथों में ले लिया था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...