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‘‘बायमां, मैं निकल रही हूं... और हां भूलना मत,

दोपहर के खाने से पहले दवा जरूर खा लेना,’’ कह पल्लवी औफिस जाने लगी.

तभी ललिता ने उसे रोक कहा, ‘‘यह पकड़ो टिफिन. रोज भूल जाती हो और हां, पहुंचते ही फोन जरूर कर देना.’’

‘‘मैं भूल भी जाऊं तो क्या आप भूलने देती हो मां? पकड़ा ही देती हो खाने का टिफिन,’’ लाड़ दिखाते हुए पल्लवी ने कहा, तो ललिता भी प्यार के साथ नसीहतें देने लगीं कि वह कैंटीन में कुछ न खाए.

‘‘हांहां, नहीं खाऊंगी मेरी मां... वैसे याद है न शाम को 5 बजे... आप तैयार रहना मैं जल्दी आने की कोशिश करूंगी,’’ यह बात पल्लवी ने इशारों में कही, तो ललिता ने भी इशारों में ही जवाब दिया कि वे तैयार रहेंगी.

‘‘क्या इशारे हो रहे हैं दोनों के बीच?’’ ललिता और पल्लवी को इशारों में बात करते देख विपुल ने कहा, ‘‘देख लो पापा, जरूर यहां सासबहू और साजिश चल रही है.’’

विपुल की बातें सुन शंभुजी भी हंसे बिना नहीं रह पाए. मगर विपुल तो अपनी मां के पीछे ही पड़ गया, यह जानने के लिए कि इशारों में पल्लवी ने उन से क्या कहा.

‘‘यह हम सासबहू के बीच की बात है,’’ प्यार से बेटे का कान खींचते हुए ललिता बोलीं.

बेचारा विपुल बिना बात को जाने ही औफिस चला गया. दोनों को

औफिस भेज कर ललिता 2 कप चाय बना लाईं और फिर इतमीनान से शंभूजी की बगल में बैठ गईं.

चाय पीते हुए शंभूजी एकटक ललिता को देखदेख कर मुसकराए जा रहे थे.

‘‘इतना क्यों मुसकरा रहे हो? क्या गम है जिसे छिपा रहे हो...?’’ ललिता ने शायराना अंदाज में पूछा, तो उन की हंसी छूट गई.

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