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‘‘अब जब तुम दीप्ति के भाई के रिश्ते के लिए राजी हो तो तुम्हें किराए का कमरा क्यों चाहिए. एकाध महीना अपने घर में गुजार लो,’’ निकिता ने कहा.

‘‘चलो, मेरे मन से पश्चात्ताप की आग ठंडी हो गई. शिवानी ने मेरी बात मान कर मेरे मन का बोझ हलका कर दिया वरना कल की बात को ले कर मैं परेशान होती रहती,’’ दीप्ति ने खुश मन से कहा.

‘‘पिछली बातों को याद करने का कोई लाभ नहीं है. अब आगे की सोचो, यह सब कैसे होगा?’’ संजना ने कहा.

सब ने निकिता की तरफ देखा. वही समझदारीभरा जवाब दे सकती थी. कुछ पल विचारने के बाद उस ने कहा, ‘‘शिवानी के घर की परिस्थितियां देखते हुए उस का बाजेगाजे और बरातियों के साथ शादी करना संभव नहीं है. कोर्ट मैरिज करना ही बेहतर तरीका होगा.’’

‘‘क्यों न आर्य समाज मंदिर में शादी कर लें,’’ संजना ने सुझव दिया.

‘‘फिर भी शादी रजिस्टर्ड करवानी पड़ेगी तो एक बार में ही क्यों नहीं...?’’

सभी कोर्ट मैरिज पर सहमत थे. दीप्ति ने सलाह दी, ‘‘आज ही उस के मामा के घर चल कर सबकुछ तय कर लिया जाए. सभी तैयार हैं तो ऐसे कार्य में देरी क्यों?’’

दीप्ति के कजिन का नाम मुकेश था. वह 35 वर्ष का ही था. लंबा और छरहरा कद. हसमुंख चेहरा. शिवानी तो पहली नजर में ही उस पर फिदा हो गई. मुकेश के घर में उस के मातापिता और बेटी थी. अच्छा खातापीता घर था.

जब सभी मुकेश और उस के मातापिता से बात कर रहे थे, शिवानी ने मुकेश की बेटी को पुचकार कर अपने पास बुला दिया. गोद में बैठा कर उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, आप का नाम क्या है?’’

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