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लेखिका- रिचा बर्नवाल

अपने पति के कटाक्ष को नजरअंदाज कर आरती ने मुसकराते हुए संगीता से कहा, ‘‘मुझे चाट खाने का शौक था और इन्हें एसिडिटी हो जाती थी बाहर का कुछ खा कर... तुम्हें एक घटना सुनाऊं?’’

‘‘सुनाइए, मम्मी,’’ संगीता ने फौरन उत्सुकता दिखाई.

‘‘तेरे ससुर शादी की पहली सालगिरह पर मुझे आलू की टिक्की खिलाने ले गए. टिक्की की प्लेट मुझे पकड़ाते हुए बड़ी शान से बोले कि जानेमन, आज फिर से करारी टिकियों का आनंद लो. तब मैं ने चौंक कर पूछा कि मुझे आप ने पहले टिक्की कब खिलाई? इस पर जनाब बड़ी अकड़ के साथ बोले कि इतनी जल्दी भूल गई. अरे, शादी के बाद हनीमून मनाने जब मसूरी गए थे, क्या तब नहीं खिलाई थी एक प्लेट टिक्की?’’

आरती की बात पर संगीता और रवि खिलखिला कर हंसे. रमाकांत झेंपेझेंपे अंदाज में मुसकराते रहे. शरारत भरी चमक आंखें में ला कर आरती उन्हें बड़े प्यार से निहारती रहीं.

अचानक रमाकांत खड़े हुए और नाटकीय अंदाज में छाती फुलाते हुए रवि से बोले, ‘‘झठीसच्ची कहानियां सुना कर मेरी मां मेरा मजाक उड़ा रही है यह मैं बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

‘‘आप को इस बारे में कुछ करना चाहिए, पापा,’’ रवि बड़ी कठिनाई से अपनी आवाज में गंभीरता पैदा कर पाया.

‘‘तू अभी जा और पूरे सौ रुपए की टिक्कीचाट ला कर इस के सामने रखे दे. इसे अपना पेट खराब करना है, तो मुझे क्या?’’

‘‘बात मेरी चाट की नहीं बल्कि संगीता के फिल्म न देख

पाने की चल रही थी, साहब,’’ आरती ने आंखें मटका कर उन्हें याद दिलाया.

‘‘रवि,’’ रमाकांत ने सामने बैठे बेटे को उत्तेजित लहजे में फिर से आवाज दी.

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