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‘‘परीक्षा में तल्लीन होने के कारण कई दिन सूरज से नहीं मिल पाए. स्कूल जा कर मालूम हुआ, सूरज बहुत दिनों से स्कूल नहीं आया. मुझे चिंता होने लगी. बिक्की ने दिलासा देते हुए कहा, ‘चिंता मत करो. शनिवार को गुरुद्वारे जा कर मिल लेंगे.’ शनिवार को गुरुद्वारे जाते वक्त मुझे खुशी के साथसाथ बहुत घबराहट हो रही थी. ‘बिक्की, अगर मुझे गुरुद्वारे में अंदर न जाने दिया गया तो?’

‘‘‘किरण, विश्वास करो, ऐसा बिलकुल नहीं होगा. वहां सब का स्वागत है. बस, सिर जरूर ढक लेना.’

‘‘कुछ सप्ताह मां और सूरज गुरुद्वारे में भी दिखाई नहीं दिए. चिंता सी होने लगी थी. हार कर एक दिन मैं और बिक्की मां के घर की ओर चल दीं. वहां तो और ही दृश्य था. बहुत से लोग सफेद कपड़े पहने जमा थे. मेरा दिल धड़का.

‘‘‘किरण, लगता है यहां वह हुआ है जो नहीं होना चाहिए था. शायद किसी की मृत्यु हुई है.’ हम दोनों हैरान सी खड़ी रहीं. इतने में हमें दूर से हमारी ओर एक महिला आती दिखाई दीं. बिक्की ने हिम्मत बटोर कर पूछ ही लिया, ‘आंटीजी, यहां क्या हुआ है?’

‘‘‘सिंह साहब की पत्नी की मृत्यु हो गई है. कई महीनों से बीमार थीं.’

‘‘‘आंटीजी, फ्यूनरल कब है?’

‘‘‘बेटा, शुक्रवार को ढाई बजे. पैरीबार के मुर्दाघाट में.’ ‘‘इतना सुनते ही मैं तो सन्न रह गई. भारी मन लिए बड़ी मुश्किल से हम दोनों घर पहुंचीं. देखतेदेखते झुंड के झुंड बादल घिर आए. बादलों की गुड़गुड़ ध्वनि के साथ मेरे मन में भी सांझ उतर आई थी. ‘‘4 दिनों बाद अंतिम संस्कार था. कितना कुछ कहना चाहती थी मां से. सभी गिलेशिकवे, मन की बातें अब मन ही में रह जाएंगी. यह कभी नहीं सोचा था, उस वक्त मैं खुद को बेबस, असहाय महसूस कर रही थी.’’

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