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तभी बाहर से शेखूभाई ने पुकारा और रोहित एक सांस में आधा गिलास दूध पी कर बिना कुछ कहे बाहर भाग गया. रामू पीछे से कहता रहा, ‘‘बाबा, यह टिफिन तो ले लो,’’ पर उस ने अनसुना कर दिया.’’

अब रोहित खामोश रहता है. पहले की तरह न तो बातबात पर गुस्सा करता न बहुत बोलता है. बस, अपनी ड्राइंग की कौपी में चित्र बनाता रहता है. मन की सारी बातें उसी के जरीए जाहिर करता है. पापा ने घर में वीडियो गेम ला कर रख दिया पर उस ने उसे छुआ तक नहीं है. यहां तक कि अब वह रामू से कोई झगड़ा भी नहीं करता और न ही पापा से कोई जिद करता है. मम्मी को गए आज 15 दिन हो गए हैं. उसे विश्वास है कि मम्मी का मन वहां नहीं लग रहा होगा. पर आश्चर्य है कि वे आ क्यों नहीं रहीं?

हां, आजकल पापा पहले की तरह देर से नहीं आते बल्कि जल्दी आ जाते हैं और थोड़ी देर तक उस के साथ खेल कर शाम होते ही सामने वाली रीता आंटी के घर चले जाते हैं या वे खुद ही आ जाती हैं. वे रोज यहीं खाना खाती हैं. पापा यह कहते हुए उन को रोक लेते हैं कि आप कहां अकेली खाना बनाएंगी. रामू भी कितना खुश रहता है, हंसहंस कर उन की बात खूब मानता है.

पापा और रीता आंटी अकसर अंगरेजी में ही बातें करते रहते हैं. रोहित जब भी उन की बातें ध्यान से सुनता है, तो उसे बहुत कुछ समझ में आ जाता है. वह उन की बातों पर तब अधिक ध्यान देता है जब वे उस की मां के बारे में बात करते हैं. उसे तब बेहद गुस्सा आता है जब वे मां को पिछड़ा, गंवार या फूहड़ कहते हैं पर वह कुछ नहीं कर पाता.

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