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मां तो यहां तक कहती हैं कि दहेज भी उन्होंने मौसी को मां से बढ़ कर ही दिया था. पुराने जमाने में रिश्ते निबाहना लोग भली प्रकार जानते थे शायद. वे हमेशा नानाजी के एहसानों से दबी रहती थीं. यदाकदा अमेरिका से आ कर ढेर सारे उपहारों से हमारा घर भर देतीं. हम भाईबहन को बहुत प्यार करतीं. वे दोनों सगी बहनों से बढ़ कर थीं.

‘‘लड़की स्वभाव से सुशील है, सुंदर है और सब से बड़ी बात एमबीए है,’’ खुशी के अतिरेक में मां बही चली जा रही थीं.

‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि वह रूपवती है?’’

मां फोटो निकाल लाई थीं. ऐसा लगा जैसे चांद धरती पर उतर आया हो, पर न जाने क्यों मेरा शंकालु हृदय इस रिश्ते को अनुमति नहीं दे रहा था.

‘‘मां, विदेश में पलीबढ़ी लड़की क्या यहां पर तारतम्य बिठा पाएगी? वहां के रहनसहन और यहां के तौरतरीकों में बहुत अंतर है.’’

‘‘तू नहीं जानती देविका का स्वभाव. मेरे ही साथ पलीबढ़ी है. उस के और मेरे संस्कारों में कोई अंतर थोड़े ही है. क्या उसे नहीं मालूम कि मैं विपिन के लिए कैसी लड़की पसंद करूंगी?’’

मैं देख रही थी भैया की भी मूक अनुमति थी इस संबंध में. बाबूजी का हस्तक्षेप सदा ही नकारात्मक रहा है ऐसे मामलों में. संबंध को स्वीकृति दे दी गई. ब्याह की तारीख 2 माह बाद दी गई थी. मांबाबूजी का विश्वास देखते ही बनता था.

मेरे जाने से जो सूनापन वहां आ गया था उसे अंजू भाभी पाट देंगी, ऐसा उन का अटूट विश्वास था. बारबार कहते, ‘जाओ, बाजार से खरीदारी कर के आओ.’ रोज मैं मां के साथ खरीदारी करती. उस के काल्पनिक गोरे रंग पर क्या फबेगा, यह सोच कर कपड़ा लिया जाता. इस घर में धनदौलत, मोटरबंगला, नौकरचाकर किसी की भी कमी नहीं थी. हीरेमोती के सैट लिए गए थे. समधियों के रहने का इंतजाम एक होटल में किया गया था. हर तरह की सुखसुविधाएं उन के लिए मुहैया थीं. मुझे भी कीमती साड़ी व जड़ाऊ सैट बाबूजी ने दिलवाया था. अश्विनी मना करते रह गए थे. मां का तर्क था कि इकलौते भाई की शादी में यह सब लेने का हक था मुझे.

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