‘‘मैंहोस्टल नहीं जाऊंगी,’’ कह कर पैर पटकती किश्ती अपने कमरे के अंदर घुस गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. अचला घबरा कर बेटी को मनाने दौड़ीं. बहुत मनाने के बाद किश्ती ने दरवाजा खोला.

‘‘बेटी, इस समय तुम्हारा होस्टल जाना बहुत जरूरी है. औफिस में मेरा काम बहुत बढ़ गया है. मुझे देर तक वहां रुकना पड़ता है और फिर तुम्हारे पापा को अकसर औफिस के काम से बाहर जाना पड़ता है. ऐसे में तुम्हें घर में अकेला नहीं छोड़ सकते हैं,’’ मां ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘तो तुम अपनी नौकरी छोड़ दो,’’ किश्ती चीख पड़ी.

अभी तो उस ने 7वीं पास की है और घर से निकालने की तैयारी शुरू हो गई. 12वीं के बाद जब कोई कोर्स करेगी तब शौक से जाएगी. पर मां उसे जबरदस्ती कैदखाने में अभी से क्यों भेज रही है. घर में कितना मजा आता है, जैसा मन चाहे वैसा करो. सुना है होस्टल में टीवी भी देखने को नहीं मिलता. उस के पापा भी इस समय शहर में नहीं हैं, नहीं तो रोरो कर उन से अपने मन की करवा लेती. किश्ती को मां पर बहुत गुस्सा आ रहा था. मां के आगे वह बहुत रोई भी, पर मां नहीं पिघलीं.

कई बैगों में जरूरत का सामान रख कर अचला किश्ती को छोड़ने होस्टल चली गईं. दूर खड़ी किश्ती मां को होस्टल में फौर्म भरते देख रही थी. आज उसे मां दुश्मन लग रही थीं. न जाने किस गलती की सजा दे रही थीं. उसे मां से नफरत सी हो गई. उस ने तय कर लिया कि वह अब मां से कभी बात नहीं करेगी. पापा से मां की हर बात की शिकायत करेगी. मां ने लौटते समय किश्ती को गले लगाया तो वह छिटक कर दूर हो गई. न उस ने मां के चेहरे को देखा न ही मां के लौटते बोझिल कदमों को.

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