कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

शामके 7 बज रहे थे. विनय ने औफिस से आ कर फ्रैश हो कर पत्नी अंजलि और दोनों बेटियों  कोमल और शीतल के साथ बैठ कर चायनाश्ता किया. आज बीचबीच में विनय कुछ असहज से लग रहे थे.

अंजलि ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘हां, कुछ अनकंफर्टेबल सा हूं, थोड़ी सैर कर के आता हूं.’’

‘‘हां, आप की सारी तबीयत सैर कर के ठीक हो जाती है.’’

‘‘तुम भी चलो न साथ.’’

‘‘नहीं, मुझे डिनर की तैयारी करनी है.’’

‘‘तुम हमेशा बहाने करती रहती हो... तुम्हें डायबिटीज है, डाक्टर ने रोज तुम्हें सैर करने के लिए कहा है और जाता मैं हूं, चलो, साथ में.’’

‘‘अच्छा, कल चलूंगी.’’

‘‘कल भी तुम ने यही कहा था.’’

‘‘कल जरूर चलूंगी,’’ फिटनैस के शौकीन 30 वर्षीय विनय ने स्पोर्ट्स शूज पहने और निकल गए.

बेटियों को होमवर्क करने के लिए कह कर अंजलि किचन में व्यस्त हो गई. काम करते हुए विनय के बारे में ही सोचती रही कि कितना शौक है विनय को फिट रहने का, दोनों समय सैर, टाइम से खानापीना, सोना.

ये भी पढ़ें-आशा का दीप: नियति की किस उलझन में थी वैभवी

अंजलि ने कई बार विनय को छेड़ा भी था, ‘‘कितना ध्यान रखते हो अपना, कितना शौक है तुम्हें हैल्दी रहने का... जरा सा जुकाम भी हो जाता है तो भागते हो डाक्टर के पास.’’

‘‘वह इसलिए डियर कि मैं कभी बीमार पड़ना नहीं चाहता, मुझे तुम तीनों की देखभाल भी तो करनी है.’’

वह अपने पर गर्व करने लगती.

विनय सैर से लौटे तो कुछ सुस्त थे. स्वभाव के विपरीत चुपचाप बैठ गए तो अंजलि ने टोका, ‘‘क्या हुआ, आज सैर से फ्रैश नहीं हुए?’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...