Hindi Fiction Stories : ‘‘क्या यार आज संडे के दिन भी तुम सोने नहीं दे रही हो. मैं तो आज दिनभर लेटा रहने वाला हूं. न तो खुद चैन से रहती हो न ही मुझे रहने देती हो. मौल में जा कर क्या खरीदना है तुम्हें? बस बैठेबैठे यही सोचती रहती हो कि पैसा कैसे खर्च करें. कभी बचत की भी सोचती हो?’’
‘‘मुझे क्या अपने लिए लेना है? आप के लिए टीशर्ट लेनी है और टुकटुक के लिए लोअर लेना है. वह छोटा हो गया है. उसे पहन कर नीचे खेलने जाता है तो सब बच्चे उसे बहुत चिढ़ाते हैं. रेयांश तो उस के पीछे ही पड़ जाता है. कई बार तो रोरो कर वह घर ही लौट आता है.’’
‘‘नौन स्टौप खर्च. मैं तो खर्चे से परेशान हो जाता हूं. कुछ पता है कल डी मार्ट से ग्रौसरी का सामान आया है उस का बिल साढे 6 हजार रुपए था. छोड़ो यार, अगले वीकैंड में देखेंगे,’’ निर्णय ने टालने के अंदाज में कहा और चादर से मुंह ढक कर लेट गया.
32 वर्षीय निशू एक स्कूल में टीचर है लेकिन चूंकि अस्थाई है इसलिए बहुत कम पैसे मिलते हैं. वह अपने घर पर बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ा कर कुछ आमदनी कर लेती है. पति निर्णय कंजूस स्वभाव का है, उस की तनख्वाह तो पूरी की पूरी झटक ही लेता है और ट्यूशन से मिलने वाले पैसे पर भी अपनी आंख गढ़ाए रहता है.
‘‘तुम्हारे पास तो पैसे होंगे, तुम पेपर वाले को दे देना. तुम दूध वाले को पेमैंट कर देना. मैं एटीएम से निकालूंगा तो तुम्हें दे दूंगा,’’ निर्णय कहता पर फिर वह दिन कभी न आता और यदि वह उसे अपने पैसे की याद दिलाती भी है वह कहता है कि मैं कहीं भागा जा रहा हूं और फिर बात आईगई हो जाती.
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