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लेकिन मेरी तो आंखें आत्मग्लानि के कारण ऊपर नहीं उठ रही थीं. बिना किसी को ठीक से जानेपहचाने हम कैसे उस के बारे में ऐसीवैसी धारणा बना लेते हैं? मोनिका के काम करने के तरीके, उस की झट से सही निर्णय लेने की योग्यता और उस के व्यवहार ने एक ही नजर में जब मुझे इतना प्रभावित कर दिया है, तो अगर दिन भर इस के साथ काम करने वाले विनय इस की तारीफ करते हैं तो उस में गलत क्या है? मैं तो बस मूरत बनी उसे सुन रही थी और देख रही थी.

मैं अंकित के पास जाने के लिए उठी ही थी कि जय बोला, ‘‘अब घबराने की कोई बात नहीं. बच्चों को तो चोटें लगती ही रहती हैं. थोड़ी देर बाद हम उसे घर ले जाएंगे. 2-4 दिन आराम करेगा, आप की देखरेख में रहेगा तो जल्दी ही भलाचंगा हो कर दौड़ने लगेगा.’’

कितना अपनापन, कितना माधुर्य, कितनी सांत्वना थी उस के शब्दों में.

‘‘आप की तो सारी शर्ट ही खराब हो गई है,’’ जय की शर्ट पर लगे अंकित के खून के धब्बे देख कर मैं ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं, अंकित के सामने शर्ट क्या महत्त्व रखती है? वैसे भी मैं इसे बहुत पहन चुका हूं. अब अलमारी से बाहर करने ही वाला था,’’ वह कितने अपनत्व से बात टाल गया था जबकि साफ नजर आ रहा था कि शर्ट नई भले ही नहीं थी, लेकिन बहुत अच्छी हालत में थी.

तभी नर्स ने बाहर आ कर हमें पुकारा. मैं जय के साथ अंदर गई. डाक्टर ने कुछ जरूरी दवाएं लिखीं और अंकित को कुछ दिन आराम करने की हिदायत दे कर उसे ले जाने के लिए कह दिया.

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