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जीवन कितना आसान हो गया है. यह जरा सा बटन दबाओ और जिस से चाहो बात कर लो. यह छोटी सी डिब्बी कितनी प्यारी चीज है,’’ मोनू भैया बड़ी मस्ती में थे.

कल ही 10 हजार का नया मोबाइल खरीद कर लाए थे. वह पुरानी डिब्बी भी सही काम कर रही थी, मगर क्या करें जब बाजार में नया ब्रैंड आ गया तो पुराना हाथ में ले कर चलना कितना स्तरहीन लगता है, यह उन का मानना है. इस मोबाइल में इंटरनैट भी है. सारी दुनिया मानो जेब में. कहांकहां का हाल नहीं है इस मोबाइल में.

उस दिन कितनी लंबीचौड़ी बहस हुई पापा और मोनू भैया के बीच. खर्च ज्यादा था और पापा अभी इतने पैसे निकालना नहीं चाहते थे. मम्मी के कंधों का दर्द बहुत बढ़ गया है... सोच रहे थे नई वाशिंगमशीन ले दें, लेकिन मोनू भैया की वजह से घर में ऐसा क्लेश डल गया था कि मम्मी ने कंधों का दर्द सहना ही श्रेष्ठ समझा. कमी में रहो मगर शांति में रहो, यही मम्मी का मानना है.

‘‘तुम मांगते तो इनकार भी कर देती... मोनू को इनकार नहीं करना चाहती... बिन मां का है... उस की मां बनना चाहती हूं.’’

मन में आया कि कह दूं कि वह बिन मां का कहां है? वह तो मां वाला ही है... बिन मां का तो मैं हूं. जिस दिन से मां और मैं मोनू भैया और मोनू के पापा के साथ रहने आए हैं उसी दिन से मैं अनाथ जैसा हो गया हूं. पिता की मृत्यु के बाद अब मां भी लगभग न के बराबर ही हैं मेरे लिए. मोनू की मां नहीं है... वह उन्हें छोड़ कर चली गई है. उसी का दंड अनजाने ही सही मैं भी भोग रहा हूं.

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