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लेखिका- उर्मिला वर्मा

शालू को रमेश के साथ बिताए ये चंद पल जिंदगी के सब से हसीन पल लग रहे थे. उसे इस नई छुअन का एहसास बारबार हो रहा था जो उस के साथ पहली बार था.

उस दिन की मुलाकात के बाद शालू और रमेश अकसर रोजाना मिलने लगे. कभी घंटों तो कभी मिनटों की मुलाकातों ने सारी हदें पार कर दीं. प्यार की आंधी इतनी जोर से चली कि सारे बंधन टूट गए और वे दोनों रीतिरिवाज के सारे बंधन तोड़ कर उन में बह गए.

छुट्टियां खत्म होते ही रमेश वापस होस्टल चला गया. इधर शालू उस के खयालों में दिनरात खोई रहती थी. शालू की रातें अब नींद से दूर थीं. उसे भी तकिए की जरूरत और रमेश की यादें सताने लगी थीं.

कुछ दिनों से शालू को कमजोरी महसूस होने लगी थी. पूरे बदन में हलकाहलका दर्द रहता था.

एक दिन शालू सुबह सो कर उठी तो चक्कर आ गया और उबकाई आने लगी. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. वह आ कर अपने कमरे में चुपचाप लेट गई.

शालू को इतनी देर तक सोता देख दीपा बूआ उस के कमरे में चाय ले कर आईं और बोलीं, ‘‘तबीयत ज्यादा खराब हो तो डाक्टर के पास चलते हैं.’’

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शालू ने मना कर दिया और बोली, ‘‘नहीं बूआ, बस जरा सी थकावट लग रही है. बाकी मैं ठीक हूं.’’

दीपा बूआ बोलीं, ‘‘ठीक है, फिर चाय पी लो. आराम कर लो, फिर बाजार चलते हैं. कुछ सामान ले कर आना?है.’’

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