Hindi Drama Story: मुंबई की वर्सोबा मार्केट में सुबहसुबह काफी भीड़ रहती है. मौर्निंग वाक कर के लौटते हुए मानव कुमार और उन की पत्नी नताशा सब्जी खरीदने लगे. ताजाताजा सब्जी देख कर नताशा अपने को नहीं रोक पाई. टमाटरों के मोलभाव में व्यस्त थीं. मानव इधरउधर का नजारा देख रहे थे. सामने से एक लंबी सी लड़की को आते देखा. चेहरा जानापहचाना सा लग रहा था. दीपिका जैसी लग रही थी, मगर इस के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थीं. मिनी फ्रौक पहनी थी, मगर सिलवटें इतनी मानो यों ही उठ कर चली आई है. नजदीक आई तो उस के घुंघराले वालों ने पुष्टि की कि यह दीपिका ही है.

दीपिका रांची से आई है, बौलीवुड में स्ट्रगल कर रही है. मानव कुमार फिल्म डाइरैक्टर हैं. जब से फिल्मों का दौर बदला है, ओटीटी के लिए फिल्में बनने लगी हैं, उन में बोल्ड सीन और गालीगलौज ने मर्यादाओं की सारी सीमाएं लांघ डाली हैं. मानव ने ऐसी फिल्मों से अपनेआप को अलग कर लिया है. जाहिर है, मानव की आर्थिक स्थिति दिनबदिन खराब होने लग गई. पत्नी ने समझया भी कि आज का दौर ही ऐसा है, सभी कर ही रहे हैं, आप भी कर लीजिए न. मगर मानव टस से मस नहीं हुए.

उन का मानना था कि मन की गवाही के बिना, कला की ‘मुजस्सिमा’ का निर्माण कभी नहीं हो सकता है.’ मानव अपने इसी आदर्श पर डटे रहे. समाज का उत्थान नहीं कर सकते तो पतन में कदापि भागीदार नहीं बनना चाहिए. नताशा सब्जी चुनने में व्यस्त थीं. मानव भी मदद करने लगे.

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