महल्ले में विकास समिति का गठन हुआ और पूरे महल्ले का विकास अबाध गति से किए जाने का संकल्प लिया गया. मुझे लगता है कि अब विकास खूब होगा क्योंकि इधर सरकार का दावा है कि वह सब का विकास करेगी और उधर महल्ला विकास समिति ने भी यही संकल्प दोहरा दिया है.

विकास की मार दोहरी है. अब विकास से हमारा महल्ला बच नहीं सकता. गठन के समय मैं खुद वहां मौजूद था. सर्वसम्मति से सदानंदजी को अध्यक्ष चुना गया. मुझ से उन्होंने पहले ही कहा था कि यदि उन्हें अध्यक्ष बना दिया गया तो वे मुझे चाय पिलाएंगे. मैं चाय पीने की गरज से उन के घर पहुंचा तो वे सफेद कुरता- पाजामा पहन कर कहीं जाने की तैयारी में थे. मैं अचरज से बोला, ‘‘क्यों, कहां जा रहे हैं? जाने से पहले चाय तो पिला जाइए.’’

‘‘प्रकाशजी, हमेशा मजाक ठीक नहीं होता. नगरनिगम प्रशासक से समय तय हो चुका है. महल्ले की सफाई के लिए उन से मिलना है,’’ वे बोले.

मैं ने कहा, ‘‘लेकिन महल्ले की सफाई में नगरनिगम क्या करेगा? हम जब कचरा ही नहीं डालेंगे तो गंदगी फैलेगी कैसे?’’

‘‘ओह, गजब है भाई, तुम समझते नहीं, महल्ले का काम है गंदगी फैलाना, मेरा कर्तव्य है कि फैली हुई गंदगी की अविलंब सफाई कराऊं. इसलिए अब जब अध्यक्ष बन गया हूं तो मुझे अथक प्रयास करने तो चाहिए. यदि सफाई व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो पाई तो अगले वर्ष मुझे कौन बनाएगा अध्यक्ष.’’

‘‘आप व्यर्थ में सीरियस हो रहे हैं, सदानंदजी. यह तो एक औपचारिकता थी. उसे कर लिया गया है. बाकी कोई अध्यक्ष होने का मतलब काम करना तो नहीं है,’’ मैं ने कहा.

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