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“कितना सुन्दर है यह छोटा सा रेत का मकान, रंग-बिरंगी सीपियों से सजा हुआ! कैसे ढूंढ ली इतनी ख़ूबसूरत सीपियां इतनी जल्दी तुमने?” अम्बर घरौंदा देख सचमुच आश्चर्य चकित था.

“अपने बालू जैसे रूखे मन से भी ऐसे ही प्यार की चमकती सीपियां  निकालकर अब प्रेम-घर सजाना चाहती हूं.” अनायास ही दिशा के मुंह से निकल गया.

“मैं भी अपने प्यार का फूल सजा दूं क्या यहां?” पास से गुज़र रहे फूल बेचने वाले से रंग-बिरंगे फूलों का एक गुच्छा खरीदते हुए अम्बर बोला.

गुच्छे से दो फूल निकाल उसकी पंखुडियां अलग कर अम्बर ने घरौंदे पर बिखेर दीं और एक बड़ा सा जवाकुसुम का फूल दिशा के बालों में लगाता हुआ बोला, “फूल नहीं यह प्यार है मेरा, देखना अब मेरा इश्क़ तुम्हारे सिर चढ़कर बोलेगा.”

दिशा निगाहें नीची कर मुस्कुरा दी फिर अपना सिर अम्बर के कंधे पर टिका दिया. अम्बर ने उसके प्रेम में भीगे चेहरे को अपनी हथेलियों में समेट प्रेम की मोहर लगा दी.

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सचमुच अम्बर के प्यार का जादू दिशा के सिर चढ़कर बोलने लगा. दिन-रात अम्बर से मिलने को बेताब दिशा को उसके बिना जीना दुश्वार सा लगने लगा था. अम्बर भी दिशा के प्रेम में रंगा था, किन्तु वह अपने को संयत कर प्रेम को मन में ही दबाये रखता था. दिशा जब कभी भी उसे अपने मन की हलचल के विषय खुलकर बताती तो वह मुस्कुराकर कहता, “समय आने पर इस रिश्ते को नाम दे देंगे.”

दिशा अब इस बात को सोचकर बेचैन हो उठती कि उसके और अम्बर के परिवार वाले इस रिश्ते को सहमति देंगे या नहीं. वह अपने माता-पिता को सब कुछ बताकर भविष्य के प्रति आश्वस्त हो जाना चाहती थी. एक दिन जब वह हिम्मत जुटा अपनी भावनाएं मां से साझा करने पहुंची तो उनकी प्रतिक्रिया देख वह भीतर तक आहत हो गयी.

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