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“अरे, अरे! दिला दीजिये न इसे बैलून. बचपन कहां लौटकर आता है?” वह दो-ढाई वर्षीय एक बच्चे को गुब्बारे के लिए मचलते देख उसकी मां से कह रहा था. गोआ के मीरामर बीच पर बैठी दिशा की ओर पीठ थी उस पुरुष की. उसे देख फिर से अम्बर की याद आ गयी दिशा को. वैसे भूली ही कब थी वह उसे ? अम्बर था ही ऐसा कि यादों से निकल ही नहीं पाता था. सबके दिल की बात समझने वाला, छोटी-छोटी बातों में खुशियां ढूंढने वाला, एक ज़िन्दा-दिल इंसान. दिशा सोच में डूबी हुई थी कि वही बच्चा एक हाथ से अपनी मां का हाथ पकड़े और दूसरे हाथ में बड़ा सा गुब्बारा थामे नन्हे कदमों से दूर तक चक्कर लगाकर फिर से आता हुआ दिखाई दिया. उसके पीछे पीछे वही पुरुष था. ‘अरे, यह तो अम्बर ही है!’ दिशा को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ.
अम्बर भी आश्चर्य चकित हो कुछ पलों के लिए दिशा को देखता ही रह गया. फिर बच्चे की ओर मुस्कुराकर हाथ हिलाने के बाद दिशा के पास आ उल्लासित स्वर में बोल उठा, “दिशा, तुम, यहां?.....अरे, यूं गुपचुप गुमसुम!”
दिशा भी अम्बर को देख अपनी प्रसन्नता पर काबू नहीं रख सकी, “तुमसे इतने सालों बाद यहां पर ही मिलना तय था शायद.... अम्बर, तुम तो अभी भी वैसे ही लग रहे हो जैसे पांच साल पहले कौलेज में लगते थे.”
“लेकिन तुम्हारा वह चुलबुलापन दूर हो गया तुमसे. पहले वाली दिशा यूं सागर किनारे चुपचाप बैठने वाली थोड़े ही थी.” अम्बर बिना किसी औपचारिकता के मन की बात कह उठा.

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