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‘केवल मरी मछली ही धारा के साथ बहती हुई ऊपर तैरती है मृदुला, जीवित मछलियां पानी के भीतर और धारा के विपरीत भी उतनी ही ऊर्जा से तैरती हैं जितनी धारा के अनुकूल,’ कंपनी बाग में घुसते ही ललितजी का यह वाक्य अनायास ही मृदुला को याद हो आया. क्या कहना चाहते थे वे इस वाक्य के माध्यम से? सोचती हुई मृदुला की निगाहें बगीचे में लगी सीमेंट की बैंचों पर केंद्रित हो गईं. आज चौथा दिन है, ललितजी दिखाई नहीं दिए, वरना अकसर वे किसी न किसी बैंच पर बैठे दिखाई दे जाते हैं. बीमार पड़ गए हों, यह खयाल आते ही मृदुला का दिल आशंका से धड़कने लगा. हो सकता है, पैर में तकलीफ बढ़ गई हो, इस कारण सुबह सैर को न आ पाते हों.

पति ने ही ललितजी से यहां, बगीचे में उस का परिचय कराया था. उन के दफ्तर के साथी, हंसमुख, जिंदादिल, दुखतकलीफों को हंसतेहंसते झेलने वाले ललितजी अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति थे. मृदुला के पति की बीमारी के समय अस्पताल में ललितजी ने मृदुला की हर तरह मदद की थी. उन्हीं की सलाह पर मृदुला ने नौकरी से 2 साल पहले ही वी.आर.एस. ले लिया था. दफ्तरी किचकिच से फुर्सत पा ली थी और अस्पताल में पति की देखरेख करती रही थीं.

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डायबिटीज के कारण पति का हृदय और गुर्दे जवाब दे गए थे. आंखें लगभग अंधी हो चुकी थीं. पांव के नासूर ने विकराल रूप धारण कर लिया था. सुबह की सैर डाक्टर ने जरूरी बताई थी, कहीं रास्ते में गिर न पड़ें इसलिए मृदुला उन के संग आने लगी थीं. बगीचे में मृदुला के पति ने बताया था कि ललितजी की पत्नी अरसे पहले ब्रेस्ट कैंसर से मर गईं. बेटीदामाद के साथ रहते हैं यहां. स्कूटर ऐक्सीडैंट में कूल्हे की हड्डी टूट गई थी. पांव में रौड पड़ी है इसलिए लंगड़ा कर चलते हैं.

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