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वह चुप रही थी. इसी तरह से दिन बीतते रहे. 6 महीने पूरे हो गए थे. उस का प्रोबेशन पीरियड समाप्त हो गया था. वह परमानैंट हो गई थी. उसे इंक्रीमैंट भी मिल गया था. वह खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी. वह रास्ते से मिठाई खरीदती लाई. ‘‘ताऊजी, मेरी प्रमोशन हो गई है... लीजिए मिठाई. मुंह मीठा करिए,’’ कह उस ने डब्बा

उन के सामने कर दिया. ‘‘अब कितनी सैलरी हो गई तुम्हारी?’’

‘‘क्व50 हजार.’’ ‘‘वाह रे... मैं तो इतना विद्वान लैक्चरर था, परंतु इतनी जल्दी इतनी सैलरी नहीं हुई.’’

‘‘ताऊजी, अब समय बदल गया है. इंजीनियर को इतनी ही सैलरी मिलती है और फिर आईटी सैक्टर में इंक्रीमैंट जल्दीजल्दी मिलता है.’’ ‘‘हां... हां... मैं सब समझता हूं कि तुम्हारा क्या चल रहा है,’’ उन की निगाहों में शक साफ झलक रहा था.

औफिस से लौटने में पूर्वा को रोज रात के लगभग 8 बज जाते थे. एक दिन औफिस में पार्टी थी. दूसरे साथियों के आग्रह को वह ठुकरा नहीं सकी और लौटने में उसे 10 बजे गए. वह तेजी से दौड़तीभागती घर पहुंची तो ताऊजी ने ही दरवाजा खोला. उन की आंखों में लाल डोरे तैर रहे थे.

आज उन्होंने उस पर सीधा हमला बोला, ‘‘मैं सब कुछ जानसमझ रहा हूं कि औफिस के नाम पर क्या चल रहा है. शरीर के सारे अंग अलगअलग पैसा कमाने के साधन बन गए हैं. लता मंगेशकर अपने गले की बदौलत धनकुबेर बन बैठी हैं तो सलमान खान हो या प्रियंका चोपड़ा अपनी कमर मटका कर धन कमा रहे हैं. मजदूर बोझा उठा कर पैसा कमा रहा है. नाचने वालियां नाच कर और सैक्स वर्कर अपने शरीर से धन कमा रही हैं. ‘‘यह भौतिकवाद का युग है. जिस के पास जितना अधिक धन है, वह उतना ही सामर्थ्यवान है. मैडमजी, आधुनिक बन कर क्या लड़कियां शरीर बेच कर धन नहीं कमा रही हैं... आप को मुझे सफाई देने की जरूरत नहीं है.’’

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