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सारिका ने मोमजामे में लिपटे फोटोफ्रेम को आराम से बाहर निकाल लिया. जैसा उसे चाहिए था बिलकुल वैसा ही बन पड़ा था वह तसवीरों से सजा फोटोफ्रेम. उसे वह बैठक की दीवार पर सजाना चाहती थी.

ब्लैक ऐंड व्हाइट और रंगीन तसवीरों वाला वह पिक्चर कोलाज वाकई बहुत सुंदर लग रहा था. विनय और सारिका की तसवीरों के बीच कबीर की भी कुछ तसवीरें थीं. होंठों पर शरारती मुसकान लिए कबीर का मासूम सा चेहरा... उस ने प्यार से बेटे के फोटो को चूम लिया और फ्रेम को वहीं कालीन पर रख हथौड़ी और कील ढूंढ़ने स्टोररूम में चली गई.

वह इसे विनय के औफिस से लौटने से पहले दीवार पर सजा देना चाहती थी, उसे सरप्राइज देने के लिए. वैसे उस के दफ्तर से लौटने में अभी काफी वक्त था. तब तक कबीर भी स्कूल से लौट आएगा. लिविंगरूम की मुख्य दीवार पर उस ने उस फोटो कोलाज को टांग दिया. फिर उसे हर कोण से निहार कर पूरी

तरह संतुष्ट होने के बाद अपने बाकी कामों में जुट गई.

रसोई का काम निबटा कर सारिका कुछ देर सुस्ताने के लिए टीवी के सामने बैठी ही थी कि मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने नंबर देखा. फोन कबीर के स्कूल से था.

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जल्दी से फोन रिसीव किया, ‘‘जी, मैं बस अभी पहुंचती हूं,’’ कह सारिका ने बात खत्म की और फिर हड़बड़ी में अपना पर्स उठाया. उस खबर का उस पर जैसे वज्रपात हो गया था. उसे तुरंत कबीर के स्कूल पहुंचना था.

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