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‘‘प्रेमवह नहीं है जो किताबों, किस्सेकहानियों में पढ़ते हैं, जो फिल्मों में देखते हैं या जो गीतोंगजलों में सुनते हैं. प्रेम तो वह है जो हम खुद महसूस करते हैं, जीते हैं. और भोगते हैं. प्रेम विज्ञान का नियम या गणित का सूत्र नहीं है. इस की परिभाषा तो हरेक प्रेमी के लिए भिन्न होती है... किसी को देखते ही आप की आंखों की चमक, होंठों की मुसकान और दिल की धड़कनें बढ़ जाएं तो समझ लीजिए कि आप को प्यार हो गया...’’  इशिता माइक पर बोलती जा रही थी और पूरा हौल एकाग्रचित हो कर उसे सुन रहा था. अवसर था कालेज में होने वाली वादविवाद प्रतियोगिता का और इशिता एक प्रतिभागी के रूप में इस में हिस्सा ले रही थी.

प्रोफैसर अयान के लिए ये बहुत ही अचरज का विषय था कि मैडिकल जैसे नीरस विषयों की पढ़ाई करने वाले युवा प्रेम के कोमल एहसास को इतनी गहराई से महसूस करते होंगे. हालांकि इशिता के बारे में वे ऐसा सोच सकते थे, क्योंकि वह अकसर ही ऐसा कुछ कर गुजरती जिस की कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता था, लेकिन उस के चुलबुलेपन की हवा धीरेधीरे आंधी में बदलती हुई पूरे मैडिकल कालेज पर बवंडर सी छा जाएगी यह कल्पना उन्होंने नहीं की थी.

इशिता की ही पहल पर मैडिकल कालेज में यह सांस्कृतिक और खेलकूद सप्ताह मनाया जा रहा था. हालांकि कालेज में छात्र संगठन जैसा कुछ भी नहीं था लेकिन इशिता ने अपने जैसे कुछ छात्रों का एक गु्रप बना रखा था जो अकसर कालेज प्रशासन के सामने छात्रों की मांगे रखता था. उन्हीं में से एक मांग यह भी थी कि कालेज में पढ़ाई के साथसाथ छात्रों के लिए कुछ रचनात्मक, मनोरंजक और स्वास्थ्यवर्धक गतिविधियां भी होनी चाहिए ताकि उन की एकरसता टूटे और वे अधिक क्षमता और जोश के साथ पढ़ाई में जुट सकें.

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