व्यंग्य- गोविंद शर्मा

रामधन भागा जा रहा था. मैं ने उसे रोक कर पूछा, ‘‘भई, यह किस दौड़ प्रतियोगिता में भाग ले रहे हो?’’ ‘‘तुम्हें नहीं पता, अपने गांव के पास खाट बाबा आ रहे हैं? उन के ही दर्शन करने जा रहा हूं,’’ वह बोला.

‘‘खाट बाबा?’’

‘‘हां...हां, खाट बाबा. वह हमेशा 2 खाटों के बीच में रहते हैं.’’

‘‘2 पाटों के बीच में रहते हैं, फिर भी साबुत हैं?’’

‘‘अरे भई, 2 पाटों के बीच में नहीं, 2 खाटों के बीच में. तुम खुद ही चल कर देख लो.’’

मैं भी उस के साथ हो लिया. गांव के बाहर खडे़ वटवृक्ष के पास भारी भीड़ जुड़ी हुई थी. सभी खाट बाबा की बातें कर रहे थे. एक कह रहा था, ‘‘अरे, तुम लोगों ने देखा होगा कि मेरे शरीर में जगहजगह कोढ़ हो गया था?’’

किसी ने भी उस के शरीर में कोढ़ देखने की हां नहीं भरी, पर वह निरुत्साहित नहीं हुआ. बोला, ‘‘सारी दुनिया ने देखा था कि मेरे शरीर में कोढ़ हो गया है. मैं ने खाट बाबा की चरणधूलि अपने शरीर पर लगाई, बाबा के 7 दिन तक लगातार दर्शन किए. वह कोढ़ छूमंतर हो गया.’’

एक और बोला, ‘‘बाबा के शरीर में बड़ी शक्ति है. उस शक्ति के कारण ही वह हमेशा 2 खाटों के बीच में रहते हैं. अगर बाबा खाट पर न बैठें तो अपनी शक्ति के कारण धरती में धंस जाएं. अगर छतरी की तरह उन के सिर पर खाट न हो तो आकाश में उड़ जाएं. मूंज की खाट में छेद होते हैं न, इसलिए धरती और आकाश से शक्ति का संतुलन बना रहता है. कहते हैं, पिछले जन्म में बाबा ने एक बार सिर पर खाट

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