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कहानी

महायोग: दिया की दौलत देख क्या था नील का फैसला?

दिया के कमरे में पहुंच कर एक बार तो नील भी स्तब्ध रह गया था. क्या हौलनुमा कमरा था दिया का. और कौन सी चीज ऐसी थी वहां जो दिया की जरूरत और टेस्ट व हौबी का प्रदर्शन न कर रही हो.

  • Digital Team
  • ,
  • Apr 11, 2020
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भाग - 1

एक कोने में लटकता खूबसूरत लैंपशेड और उसी के नीचे सुंदर सा झूला जिस के पीछे किताबों का रैक. उस की स्टडीटेबल पर सजा हुआ कीमती खूबसूरत लैंप.

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भाग - 2

नील व उस की मां को होटल वापस जाना था. तय हुआ कि अगले दिन नील व दिया लौंगड्राइव पर चले जाएं. दिया ने कुछ नहीं कहा परंतु अगले दिन वह समय पर तैयार थी.

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भाग - 3

दिया सुंदर थी. मुसकराते मुख पर सदा एक चमक बनी रहती. इसी दिया को उस की सहेली के भाई के विवाह में नाचते हुए जब एक परिवार ने देखा तो झट से उन्हें लंदन में बसे हुए अपने घनिष्ट मित्र की याद आई.

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भाग - 4

‘‘मैं पूछ रही थी आगे क्या करना चाहती हो, दिया?’’ नील की मां ने फिर प्रश्न चाशनी में लपेट कर उस के समक्ष परोस दिया था.

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भाग - 5

उन दिनों दिया का दिमाग न जाने किन बातों में घूमता रहता. इस बीच एक और घटना घटित हो गई जिस ने दिया को भीतर तक हिला कर रख दिया.

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भाग - 6

नील और उस की मां के बदले व्यवहार ने यश को स्वयं दिया को लंदन ले जाने के विचार पर सोचने को मजबूर कर दिया. अभी वे इस तैयारी में ही थे कि....

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भाग - 7

कामिनी यश की मनोदशा समझ रही थी परंतु उस समय कुछ भी बोलने का औचित्य नहीं था, सो चुप ही रही. यश का स्वभाव था यह. वे अपने और मांपिता के सामने किसी की नहीं सुनते थे.

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भाग - 8

फोन पर बात कर के यशेंदु संतुष्ट नहीं हो सके. आखिर उन की बेटी के भविष्य का प्रश्न उन के समक्ष अधर में लटक रहा था. मन में संदेह के बीज पड़ चुके थे.

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भाग - 9

क्या बताती कामिनी उन्हें? वह कुछ भी बताने या कहनेसुनने की स्थिति में नहीं थी. सो, टुकुरटुकुर सास का मुंह देखती रही.

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भाग - 10

मां को देखते ही दोनों बेटे विचलित हो उठे. अब दिया के अतिरिक्त यशेंदु की चिंता भी थी. पापा की टांग कट जाने पर दिया व दादी कैसे सहज रह सकेंगी?

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भाग - 11

दूरदूर तक ढूंढ़ने से भी दिया को अपना कुसूर नहीं दिखाई दे रहा था. लेकिन फिर भी क्यों उस ने मूकदर्शक बन कर पश्चात्ताप करने और सबकुछ सहने की ठान ली?

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भाग - 12

नील को अपने पास देख कर दिया हतप्रभ रह गई. ऐसे भी होते हैं लोग. इतने बेशर्म. नील दिया से ऐसे व्यवहार कर रहा था मानो कुछ हुआ ही न हो.

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भाग - 13

मानसिक तनाव, शारीरिक थकान तथा अंधकारमय भविष्य की कल्पना ने दिया की सोचनेसमझने की शक्ति कमजोर कर दी थी. घुटन के अतिरिक्त उस के पास अपना कहने के लिए कोई नहीं था.

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भाग - 14

शायद नील के मन में कहीं न कहीं दिया के लिए नरमाहट पैदा हो रही थी परंतु मां का बिलकुल स्पष्ट आदेश...वह करे भी तो क्या?

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भाग - 15

अचानक धर्मानंदजी दिखाई पड़े. गौरवपूर्ण, लंबे, सुंदर शरीर वाला यह पुरुष उसे वैसा ही रहस्यमय लगता था जैसे नील व उस की मां थे.

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भाग - 16

एक ही दलदल में फंसे धर्मानंद और दिया के लिए चारों तर फैले जल से निकलना क्या आसान था...

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भाग - 17

उस ने नील की मां को फोन किया और स्पीकर का बटन दबा दिया जिस से दिया भी सुन सके.

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भाग - 18

 ‘‘हां, तमाशा ही तो है, दिया. तुम वैसे भी सोचो, पूरी दुनिया में ग्रह मिलाए जाते हैं क्या? विदेशों में तो वैसे ही संबंध बन जाते हैं, फिर भी यहां पर इस अंधविश्वास की चिंगारी जल रही है.

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भाग - 19

दिया और धर्म दोनों का मन करे या न करे, डू और नौट टू डू के हिंडोले में ऊपरनीचे जरूर हो रहा था लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों ने दिल से स्वीकार कर लिया कि इस चक्रव्यूह से निकलने के अलावा कोई चारा नहीं है.

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भाग - 20

अनजाने देश में गलत लोगो के बने जल से निकलने का दिया और धर्म ने आखिर कौन सा रास्ता अपनाया ?

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भाग - 21

ने बड़े सपाट स्वर में कहा था कि वह उन सब लोगों के लिए बड़ी से बड़ी सजा चाहती है जो धर्म के नाम पर देह का व्यापार कर के उस के जैसी मासूम लड़कियों का जीवन बरबाद करने में जरा सा भी संकोच नहीं करते.

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भाग - 22

ईश्वरानंद के भ्रमजाल से मुक्त हो चुकी दिया की आंखों में खुशी की चमक के बजाय आंसू क्यों थे?

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भाग - 23

दुख का अंधकार पार कर घर लौटी दिया के जीवन को मिला नया आयाम.

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