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दिया ने बड़े सपाट स्वर में कहा था कि वह उन सब लोगों के लिए बड़ी से बड़ी सजा चाहती है जो धर्म के नाम पर देह का व्यापार कर के उस के जैसी मासूम लड़कियों का जीवन बरबाद करने में जरा सा भी संकोच नहीं करते. न जाने उन लोगों के हाथ कितनी मासूम लड़कियों के खून से रंगे हुए होंगे. दिया ने अपने विवाह से ले कर, नील के व्यवहार, मिसेज शर्मा की दकियानूसी बातें, अपने मानसिक उत्पीड़न के बारे में विस्तारपूर्वक खुल कर एनी से बात की थी. गाड़ी में बैठेबैठे ही काउंसिल जनरल औफ इंडिया से फोन पर बात कर ली गई थी. एनी ने दिया से उस के पासपोर्ट नंबर के बारे में पूछा, दिया को नंबर याद नहीं था. धर्म के मुख से निकल गया था कि पासपोर्ट और कहीं नहीं, ईश्वरानंद की कस्टडी में ही होगा. बातों ही बातों में रास्ता जल्दी ही कट गया.

कमजोरी के बावजूद दिया अंदर व बाहर से काफी स्वस्थ महसूस करने लगी थी. एनी ने दिया की पीड़ा महसूस की और उस के कंधे पर सहानुभूति भरा हाथ रख कर उसे आश्वस्त कर दिया. कुछ देर पश्चात पुलिस ने मिसेज शर्मा के घर पर दस्तक दे दी. दरवाजे की आवाज से मिसेज शर्मा चौंक उठीं. ड्राइंगरूम में तिगड़ी जमी हुई थी. नील, नैन्सी और रुचिका यानी मिसेज शर्मा. तीनों सोफों पर जमे पड़े थे. खैर, दरवाजा खोलने वे ही आई थीं, चहकती सी. धर्मानंद को देखते ही उन की चहकन को ब्रेक लग गया, दिया भी मुंह बनाए साथ ही खड़ी थी.

‘‘धर्मानंदजी, क्या कहा था मैं ने आप से?’’ उन की स्नेहमयी मुद्रा अचानक  रौद्रमयी मुद्रा में परिवर्तित हो उठी, जैसे उन की पीठ पर चाबुक पड़ गया हो.

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