सुजाता की हंसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. मीरा ने उसे सचेत किया. सुबह की सैर कर रहे सभी लोगों की निगाहें उसी पर आ कर टिक गईं. कितना विचित्र था, पर 50 वसंत पार कर चुकी सुजाता आज भी लाइफ को मस्त, बेपरवाह, जिंदादिली से जीती थी. लेकिन कभीकभी उस का यही बिंदासपन किसी सार्वजनिक जगह पर लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र भी बन जाता था. ऐसा ही उस दिन सुबह हुआ था.
रोज की तरह सुबह सैर पर निकली दोनों सखियां अपनी ही किसी बात पर खिलखिला कर हंस पड़ी थीं. मीरा ने तो जल्द ही अपनी हंसी को काबू कर लिया पर आदत से मजबूर सुजाता अपनी हंसी को रोक नहीं पा रही थी.
मिनी मुंबई बन चुके इंदौर के सुदामानगर स्थित गोपुर चौराहे से राजेंद्र नगर की ओर जाने वाले रिंग रोड पर सुबह की सैर के लिए लोगों का मेला सा लग जाता है. पास में आईडीए की कालोनी अभी पूरी तरह खाली है, पर उस की पहले से बन चुकी शानदार सड़कें फिलहाल लोगों के सुबहशाम टहलने या बच्चों के क्रिकेट खेलने के काम ही आती हैं.
वहीं पास ही वैशाली कालोनी में सुजाता का खूबसूरत घर है. पति आर्मी से रिटायर थे. 2 साल पहले ही एक सड़क हादसे में गुजर चुके थे.
कुणाल एक निडर, निर्भीक व साहसी इंसान थे, जिन के साथ सुजाता ने खुशहाल जिंदगी जी थी. उन के साथ बेखौफ जीवन जीने वाली सुजाता उन के जाने के बाद नियति को बड़ी ही सहजता से स्वीकार कर आगे बढ़ चली थी. उस के लिए शायद यही कुणाल को दी जाने वाली सच्ची श्रद्धांजलि थी.
करीब 6 महीने पहले सुजाता ने अपनी इकलौती बेटी पलक की शादी बहुत ही धूमधाम से पुणे में सौफ्टवेयर इंजीनियर समर से की थी. समर बहुत ही प्रतिभाशाली और खुशमिजाज युवक था. शुरू से अनुशासित जिंदगी की पक्षधर सुजाता अपने बेहतर खानपान और नियमित व्यायाम करने के कारण वास्तविक उम्र से बहुत कम उम्र की दिखाई देती थी.
उस दिन मीरा की तबीयत ठीक न होने पर सुजाता अकेले ही सैर पर आई. उस की चाल में रोज की अपेक्षा कुछ तेजी थी. अपनी सैर पूरी कर वह घर जाने के लिए मोड़ पर आई ही थी कि अचानक एक कुत्ता दौड़ता आता दिखा. जब तक वह उस के रास्ते से हटती वह उस के ऊपर से छलांग लगा कर आगे निकल चुका था.
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सुजाता ने संभलने की बहुत कोशिश की, पर गिर गई. आसपास से जा रहे लोग उस के पास जमा हो गए. एक भद्र महिला ने उस की उठने में मदद की. तभी उसी कुत्ते को पकड़े एक 60-65 वर्षीय सज्जन उस के पास आ कर उस से माफी मांगते हुए बोले, ‘‘मैं फ्रूटी की इस हरकत पर बहुत शर्मिंदा हूं. आमतौर पर यह बहुत ही शांत स्वभाव की है, पर पता नहीं आज इसे क्या हो गया… आप को ज्यादा तो नहीं लगी?’’
‘‘नहीं, कोई बात नहीं. मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ अपनी कुहनी पर लगी खरोंच को साफ करते हुए सुजाता ने कहा.
‘‘लीजिए इस से साफ कर लीजिए,’’ सफेद कुरतापाजामा पहने उन सज्जन ने एक रूमाल आगे करते हुए कहा.
उन दोनों को आपस में रजामंद देख लोग अपने रास्ते चल दिए. रूमाल ले कर सुजाता अपने कपड़ों को साफ करने लगी. फिर वे सज्जन उस से बात करते हुए उस के साथ ही चलने लगे.
‘‘मेरा नाम सोमनाथ है. आप?’’ सोमनाथजी ने प्रश्नवाचक निगाहों से सुजाता की तरफ देखा.
‘‘जी, मैं सुजाता, थैंक्स…’’ कह कर सुजाता ने उन का रूमाल उन्हें पकड़ा दिया. फिर कुछ देर बाद ही उस का घर आ गया.
‘‘ओके, फिर मिलते हैं,’’ कह कर सुजाता अपने घर की तरफ मुड़ी ही थी कि ऐक्सक्यूज
मी की आवाज ने उसे मुड़ कर देखने को मजबूर कर दिया.
‘‘जी?’’ कह सोमनाथ पर उस ने एक प्रश्नवाचक नजर डाली.
‘‘क्या 1 गिलास पानी मिलेगा?’’ सोमनाथजी के पूछने के अंदाज पर सुजाता को हंसी आ गई.
‘‘हांहां, क्यों नहीं. आइए न,’’ ताला खोलते हुए सुजाता बोली.
फू्रटी को वहीं गेट पर बांध कर सोमनाथ घर के भीतर आ गए. जब तक सुजाता पानी ले कर आई तब तक उन्होंने पूरे कमरे का मुआयना कर लिया. खूबसूरत कमरे में बहुत ही करीने से लगी हर चीज घर के मालिक के शौक व सुगढ़ता को बयां कर रही थी.
‘‘लीजिए… बैठिए न, सुजाता सोमनाथ के सामने पानी की ट्रे लिए खड़ी थी.’’
‘‘थैंक्स, वाकई बहुत प्यास लगी थी,’’ एक ही सांस में सोमनाथजी ने गिलास खाली कर दिया.
‘‘आप के पति व बच्चे नजर नहीं आ रहे?’’ उन्होंने पूछा.
‘‘मेरे पति अब इस दुनिया में नहीं हैं. 1 बेटी है, जिस की शादी हो चुकी है.’’
‘‘उफ, माफ कीजिएगा मुझे मालूम नहीं था,’’ सोमनाथजी ने बेहद कोमल स्वर में कहा.
‘‘इस में माफी मांगने की क्या बात है? जो होना होता है वह हो कर ही रहता है. कृपया आप शर्मिंदा न हों,’’ सुजाता ने संजीदगी से कहा.
सुजाता के पूछने पर सोमनाथजी ने अपने बारे में बताया कि वे तलाकशुदा हैं. पत्नी से तलाक के बाद वे अपना घर छोड़ कर अन्नपूर्णा कालोनी में ही किराए पर रह रहे हैं. 1 बेटा है, जो शादीशुदा है और अपनी पत्नी व बच्चों के साथ उन की पत्नी यानी अपनी मां के साथ मालवीय नगर में बने उन के अपने घर में रह रहा है.
सोमनाथजी के चले जाने पर सुजाता कुछ देर तक उन के बारे में सोचती रही. कितना शांत व सौम्य व्यक्तित्व है, लेकिन उन आंखों में कितना खालीपन और नीरसता समाई है. कहने को तो मुझ से बातें करते रहे, लेकिन आंखों की खामोशी बरकरार रही. हुंह, मुझे क्या करना… सब की अपनीअपनी कहानी है सोच कर वह अपने रोजमर्रा के काम में लग गई. वैसे भी उदास हो कर बैठ जाना उस की फितरत में नहीं था.
दूसरे दिन सैर के लिए निकली सुजाता की निगाहें किसी को ढूंढ़ रही थीं. तभी सामने से सोमनाथजी को आता देख उस की आंखों में चमक आ गई. बोली, ‘‘गुडमौर्निंग सोमनाथजी.’’
‘‘वैरी गुडमौर्निंग सुजाताजी.’’
‘‘आज आप की फ्रूटी नहीं आई?’’
‘‘आज उसे पहले घुमा दिया है. कल उस ने आप को बहुत परेशान किया था न,’’ सोमनाथजी ने शांत भाव से कहा.
‘‘अरे, ऐसा करने की क्या जरूरत थी. मेरा मतलब है मुझे उस से कोई दिक्कत नहीं है. सुजाता ने हंसते हुए कहा.’’
‘‘आप की सहेली आज भी नहीं आईं?’’
‘‘हां, शायद कल से आ जाए. वैसे आप को कैसे पता मेरे साथ मेरी सहेली भी आती है?’’ सुजाता ने घोर आश्चर्य से पूछा.
‘‘आप दोनों को रोज एकसाथ घूमते देखता हूं, इसलिए पूछा.’’
‘‘पर मैं ने तो आप को कल पहली बार देखा,’’ सुजाता मुसकराई.
‘‘आप अपनी बातों में ही इतनी मस्त रहती हैं कि आप को पता ही नहीं चलता कि आप के आसपास और कौन है?’’
‘‘माफ कीजिएगा… मैं बस ऐसी ही हूं. मस्त और बेपरवाह… शायद मुझ में यह बहुत बड़ी कमी है, पर क्या करूं, मैं ज्यादा देर तक सीरियस नहीं रह सकती,’’ सुजाता ने कुछ गंभीर स्वर में कहा.
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‘‘अरे, आप तो बुरा मान गईं. मेरी बात का यह मतलब हरगिज नहीं था. प्लीज, मुझे माफ कर दीजिए,’’ सोमनाथजी ने बेचारगी से कहा.
‘‘लगता है हम दोनों एकदूसरे से सिर्फ माफी ही मांगते रहेंगे,’’ कह कर सुजाता फिर जोर से हंस पड़ी.
इधर कुछ पारिवारिक उलझनों की वजह से मीरा हफ्ता भर सुबह की सैर पर नहीं आ सकी. तब तक सुजाता और सोमनाथ अच्छे दोस्त बन चुके थे. हालांकि दोनों के व्यक्तित्व एकदूसरे से बिलकुल मेल नहीं खाते थे. जहां एक ओर सुजाता मिलनसार, बातूनी और खुशमिजाज स्वभाव की थी, वहीं दूसरी ओर सोमनाथ कुछ अंतर्मुखी और गंभीर व्यक्तित्व के इंसान थे. फिर भी दोनों को एकदूसरे का साथ पसंद था.
लगभग 1 हफ्ते बाद सुजाता ने साथ आई मीरा से सोमनाथजी का परिचय
करवाया. पर मीरा के साथ सैर करते हुए दोनों ही कुछ असहज फील कर रहे थे.
उस दिन मीरा सैर पर से सीधे सुजाता के साथ उस के घर आ गई. सुजाता चाय बनाने लगी और मीरा उस के साथ किचन में आ कर वहीं किचन स्टैंड पर बैठ गई. फिर बोली, ‘‘ये सब क्या चल रहा है सुजाता?’’
‘‘मतलब? मैं समझी नहीं?’’
‘‘तू अच्छी तरह जानती है मैं क्या और किस के बारे में पूछ रही हूं,’’ मीरा ने कुछ जोर दे कर कहा.
‘‘अच्छा… तू मेरे और सोमनाथजी के बारे में जानना चाहती है तो सुन,’’ फिर कुछ रुक कर सुजाता बोली, ‘‘सोमनाथजी मेरे अच्छे दोस्त हैं. उन से मिलना, बात करना मुझे अच्छा लगता है. अब तो हो गया न तेरी शंका का समाधान?’’ सुजाता ने अपने चिरपरिचित अंदाज में पूछा.
‘‘नहीं, बल्कि मेरा प्रश्न यहां से शुरू हो रहा है. आगे क्या?’’ मीरा ने चिंता जताते हुए कहा.
‘‘पता नहीं मीरा, पर उस इंसान में कुछ बात तो है, जो उसे दूसरों से अलग करती है. आगे की आगे देखी जाएगी. तू चिंता मत कर, जिंदगी का प्रवाह जिस ओर ले जाए गिला नहीं,’’ सुजाता ने मीरा को तसल्ली देनी चाही.
‘‘सब कुछ ठीक है, पर तू जो भी करे, पलक को ध्यान में रखते हुए करना,’’ मीरा ने उसे आगाह किया.
‘‘बिलकुल,’’ सुजाता ने मीरा को आश्वस्त किया.
आगे पढ़ें- मीरा के जाते ही सुजाता…