आज का युग घोटाले, फिक्सिंग, ठगी, बाबागीरी और भ्रष्टाचार की ओर तेजी से बढ़ता नजर आ रहा है. ऊपर से जब से मेरे दिलोदिमाग में क्रिकेट में होने वाले स्पौट फिक्ंिसग का मामला घुसा है, मुझे तो बारबार गांधीजी का यह कथन याद आए बिना चैन ही नहीं मिल रहा, ‘‘हमारी धरती प्रत्येक मनुष्य की जरूरतों को पूरा कर सकती है, लेकिन प्रत्येक मनुष्य के लालच को कभी पूरा नहीं कर सकती.’’

इशारों से खेलों में होने वाला भ्रष्टाचार अब सभी के सामने खुल कर आ चुका है. खेलों में तरहतरह के डोपिंग, स्कैंडल और मैच फिक्ंिसग की खबरें आएदिन आती रहती हैं. यहां पर यह कहना भी उचित होगा कि जब लोगों के पास ज्यादा रुपया आता है तो उन के अंदर इस को और अधिक पाने की ललक अनायास ही पैदा हो जाती है. कुछ ही लोग होते हैं जो खुद को संयमित रख पाते हैं. तेज बुखार को पैरासिटामौल यानी बुखार नियंत्रक दवा खा कर नियंत्रित किया जा सकता है मगर किसी व्यक्ति के दिमाग में यदि रुपया कमाने का फुतूर चढ़ जाए तो वह अकसर कारागार की सलाखों के पीछे जा कर ही नियंत्रित होता हुआ देखा गया है.

कहते हैं कि अति तो किसी भी चीज की हो, बुरी ही होती है. फिर भी लोग मानते नहीं. नएनए तरीके निकाल ही लेते हैं घोटाले, फिक्ंसिंग और भ्रष्टाचार करने के. चलना भी नियति का नियम है, सो, हमारे क्रिकेट खिलाड़ी भी चल दिए फिक्ंसिंग जैसी राह पर और खेल के मध्य ही इशारेबाजी कर बैठे. वैसे देखा जाए तो क्रिकेट के इतिहास में इशारों का संबंध  बहुत पुराना रहा है, क्योंकि क्रिकेट के अंपायर इस कला में माहिर होते थे. उन के एक इशारे पर पूरी की पूरी टीम आउट घोषित कर दी जाती थी यानी पूरी टीम की हारजीत व नोबौल का निर्णय हो जाता था.

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