‘पत्नी’शब्द सुनते ही बदन में झुरझुरी सी फैल जाती है, हाथपैर सुन्न पड़ने लगते हैं, आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है, जबान स्वत: बंद हो जाती है गोया उस पर ताला लग गया हो. अकसर लोग यह कहते हैं कि पुरुषप्रधान समाज में नारी स्वतंत्रता की चाहे जितनी बातें की जाएं पर स्त्री को उतनी आजादी प्राप्त नहीं है जितनी कि पुरुष को. स्त्री वह सब कुछ आजादी के साथ नहीं कर सकती जिसे पुरुष सहज रूप से अपने अधिकार के साथ करता है.

कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि पुरुष सदा से ही नारी के साथ भेदभाव करता आया है. उसे अबला और शक्तिहीन मान कर प्रताडि़त करता है. तो क्या यह सब सत्य है? अगर इस विषय पर मेरा मत लिया जाए तो मैं कहूंगा नहीं. ऐसा कदापि नहीं है. भला पुरुषों में इतनी हिम्मत कहां से आ गई जो अपनी पत्नियों पर अत्याचार कर सकें? ये सब अधिकार तो धर्मपत्नियों के पास सुरक्षित हैं, आरक्षित हैं. फिर बेचारे पतियों को नाहक बदनाम करने की क्या तुक?

आज विश्व के 90% से भी ज्यादा पति पत्नियों से परेशान हैं, पीडि़त हैं. दिल्ली के पत्नियों द्वारा पीडि़त पतियों ने तो बाकायदा पत्नी पीडि़त पतियों का एक संगठन ही बना लिया है और सरकार से मांग की है कि पतियों को पत्नियों के अत्याचारों से बचाने के लिए संविधान में एक नई धारा 498बी शामिल की जाए. उल्लेखनीय है कि भारतीय दंड संहिता में पत्नी को पति एवं सास के अत्याचारों से बचाने के लिए धारा 498ए का प्रावधान है.

हमारे एक मित्र हैं निगमजी. बेचारे निरीह से प्राणी. बिलकुल सीधेसादे तथा स्वभाव से बेहद विनम्र. किंतु उन की पत्नी बाप रे बाप नाम लेने से ही ज्वालामुखी फट पड़ता है. हमारे महान भारत में उन के जैसा पत्नी द्वारा सताया गया पति कोई विरला ही मिलेगा. इस बारे में उन का नाम गिनीज बुक में आसानी से दर्ज हो सकता है. पत्नी पुराण की चर्चा चलने पर उन्होंने अपनी जो करुण कथा व्यक्त की वह उन्हीं के शब्दों में इस प्रकार है:

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