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लेखक- जितेंद्र मोहन भटनागर

मां को खांसी आनी शुरू हो गई थी, इसलिए उस का ध्यान अकसर मां के स्वास्थ्य की तरफ चला जाता. उन्हें कफ सिरप पिला कर कुछ देर उन के पास बैठ कर उन का मन बहलाती. फिर जब वे नौवल हाथ में उठा लेतीं तो वह वहां से उठ कर अपने कमरे में चली आती.

पिता के मरने के बाद उन के अपने कमरे में विंग कमांडर सुंदर बहादुर की यादें हर तरफ मौजूद थीं. मां ने अपने पलंग के सामने एक आकर्षक युगल चित्र लगवा लिया था, जिस में वे वरदी पहने पति के साथ एक आकर्षक बनारसी साड़ी में सजीधजी खड़ी थीं.

शुरू में तो कई बार उस चित्र को देख कर किन्हीं यादों में डूब जातीं, फिर रोने लगतीं, पर तान्या की उम्र बढ़ने के साथ सब सामान्य हो गया. पति की यादों से जुड़ा दूसरा तैल चित्र, ड्राइंगरूम की दीवार पर उन्होंने लगवा ही रखा था, जिस के सामने पड़े सोफे पर बैठ कर उन्हें न जाने क्यों बड़ी तसल्ली मिलती थी.

लौकडाउन का आज 7वां दिन था. सवेरे जब तान्या मां के

कमरे में रोज की तरह चाय पीने बैठी तो मां की तरफ देख कर हैरान रह गई.

मां से चाय का घूंट सटका नहीं जा रहा था, तान्या ने अपने हाथ में पकड़ा चाय का प्याला स्टूल पर रखा और उन के करीब पहुंच कर उन की पीठ पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ मम्मा.’’

‘‘गले में खराश हो रही है और चाय का घूंट सटका नहीं जा रहा है,’’ अनिला बड़ी मुश्किल से बोल पाईं.

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