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नाश्ते के बरतन समेटतेसमेटते मैं ने व्यंजन सूची में एकदम से परिवर्तन कर दिया और तय कर लिया कि आज सारा खाना इन्हीं की पसंद का बनाऊंगी, जिस से इन्हें एहसास हो कि मैं इन की उपेक्षा नहीं करती हूं. शाम को मैं औफिस से आते समय प्रशांत की पसंद की चीजों के लिए जरूरी सामान बड़े स्टोर से ले आई.

मैं ने बड़े जतन से इन की पसंद की उरद की दाल, भरवां भिंडी, मसाले वाले सूखे आलू, बूंदी का रायता, खीरे और टमाटर का सलाद तथा नमकीन चावल तैयार किए. आज बच्चों की पसंद को एकदम से भुला कर मैं ने इन्हीं की पसंद की मीठी चीज भी बना डाली.

8 बज गए. बच्चे डिनर का इंतजार कर रहे थे. काम में व्यस्त होने के कारण सुबह की घटना को मैं कुछ देर भुला बैठी थी, बारबार मन कहता कि इतने गुस्से में गए हैं. कहीं सचमुच ही खाना खाने न आएं तब? पुरुषों का क्या, किसी भी होटल, रेस्तरां या कैंटीन में जा कर भी पेट भर लेते हैं.

और फिर मैं कमरे में ऐसी जगह बैठ कर इन का इंतजार करने लगी जहां से लोग तो आते दिख रहे थे, पर आने वाले मु  झे नहीं देख सकते थे. 10 बज गए बच्चों को खिला कर सुला दिया. 12 बजे बज गए पर ये नहीं आए. अब मु  झे पक्का विश्वास हो गया कि आज ये गुस्से में खाने नहीं आएंगे. मोबाइल स्विच्ड औफ आ रहा था. शायद प्रशांत ने मु  झे ब्लौक कर दिया था.

1 बजते ही मैं काफी निराश हो गई. अपने ऊपर काफी गुस्सा आने लगा कि नाहक छोटी सी बात को इतना तूल दे डाला. अभी न मालूम अपने को कितना धिक्कारती कि एक बज कर 10 मिनट पर देखती हूं कि ये अंधेरे में दूर से चले आ रहे हैं, आहिस्ताआहिस्ता.

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