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इन के होंठ कांपने लगे, चेहरे का रंग एकदम बदल गया. चाय के कप को मेज पर पटक कर पास ही रखा अपना ब्रीफकेस  झटके से खोला और कागजात उलटतेपलटते हुए बोले, ‘‘तो कान खोल कर सुन लो, बाबूजी से मेरी तुलना करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है और जहां तक तरक्की का प्रश्न है मु  झे इस की जरा भी परवाह नहीं है क्योंकि आज के युग में योग्यता से अधिक चाटुकारिता को महत्त्व दिया जाता है, जो मेरे जैसे व्यक्ति के बूते की बात नहीं है. और हां, तुम मु  झ से फालतू की बकवास मत किया करो. हर समय लड़ने को तैयार रहती हो. अपनी कमाई की घौंस न दिया करो.’’

‘‘मैं क्यों लड़ने को तैयार रहती हूं?   झगड़ा तो आप ने शुरू किया था. क्यों आप ने मु  झे...’’

‘‘कह ही दिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा? जो पार्टनर अपनी खुशी से अपने पति को कुछ भी समय न दे सके उसे और क्या कहा जा सकता है? तुम्हीं बोलो, तुम ने 11 सालों में आज तक मेरे लिए क्या किया है?’’

‘‘आप के लिए मैं ने अपना मजहब छोड़ दिया, घर छोड़ा.’’

‘‘तो मैं ने भी तुम्हारे लिए अपना घरपरिवार तक छोड़ दिया,’’ और यह कहतेकहते इन का शरीर गुस्से से बुरी तरह कांपने लगा.

11 सालों में मैं ने इन के लिए क्या किया है, यह सुन कर मु  झे ऐसा लगा जैसे अचानक ही मु  झ से कोई कठिन प्रश्न पूछ लिया गया हो, जिस का सचमुच तत्काल मु  झ से ठोस उत्तर देते नहीं बना. आंखें बुरी तरह से भर आईं.

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