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लेखिका- आशा शर्मा

‘‘हर्ष,अब क्या होगा?’’ आभा ने कराहते हुए पूछा. उस की आंखों में भय साफ देखा जा सकता था. उसे अपनी चोट से ज्यादा आने वाली स्थिति को ले कर घबराहट हो रही थी.

‘‘कुछ नहीं होगा… मैं हूं न. तुम फिक्र मत करो,’’ हर्ष ने उस का गाल थपथपाते हुए कहा.

मगर आभा चाह कर भी मुसकरा नहीं सकी. हर्ष ने उसे दवा खिला कर आराम करने को कहा और फिर खुद भी उसी के बैड के एक किनारे अधलेटा सा हो गया.

आभा दवा के असर से नींद के आगोश में चली गई. मगर हर्ष के दिमाग में कई उलझनें एकसाथ चहलकदमी कर रही थीं…

कितने खुश थे दोनों जब सुबह रेलवे स्टेशन पर मिले थे. हर्ष की ट्रेन सुबह 8 बजे ही स्टेशन पर लग चुकी थी. आभा की ट्रेन आने में अभी

1 घंटा बाकी था. यह समय हर्ष ने उस से व्हाट्सऐप पर चैटिंग करते हुए ही बिताया था. जैसे ही आभा की ट्रेन के प्लेटफौर्म पर आने की घोषणा हुई, वह आभा के कोच की तरह बढ़ा. आभा ने भी उसे देखते ही जोरजोर से हाथ हिलाया.

स्टेशन की भीड़ से बेपरवाह दोनों वहीं कस कर गले मिले और फिर अपनाअपना बैग ले कर स्टेशन से बाहर निकल आए. एक होटल में कमरा ले कर दोनों ने चैक इन किया. अटैंडैंट के सामान रख कर जाते ही दोनों फिर एकदूसरे से लिपट गए.

थोड़ी देर तक एकदूसरे को महसूस करने के बाद वे नहाधो कर नाश्ता करने बाहर निकले. आभा का बाहर जाने का मन नहीं था. वह तो हर्ष के साथ पूरा दिन कमरे में ही बंद रहना चाहती थी. मगर हर्ष ने ही मनुहार की बाहर जा कर उसे जयपुर की प्याज की स्पैशल कचौरी खिलाने की जिसे वह टाल नहीं सकी थी. हर्ष को अब अपने उस फैसले पर अफसोस हो रहा था कि न वह बाहर जाने की जिद करता और न यह हादसा होता.

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होटल से निकल कर जैसे ही वे मुख्य सड़क पर आए, पीछे से आती एक अनियंत्रित कार ने आभा को टक्कर मार दी. वह लहूलुहान सी वहीं सड़क पर गिर पड़ी. हर्ष ऐंबुलैंस की मदद से उसे हौस्पिटल ले गया. ऐक्सरे जांच में आभा के पांव की हड्डी टूटी पाई गई. डाक्टर ने 6 सप्ताह के लिए पलस्तर बांध हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया.

तभी मोबाइल की आवाज से आभा की नींद टूटी. उस के मोबाइल में रिमाइंडर मैसेज बजा. लिखा था, ‘से हैप्पी ऐनिवर्सरी टु हर्ष.’ आभा दर्द में भी मुसकरा दी. पिछले साल उस ने हर्ष को विश करने के लिए यह रिमाइंडर अपने मोबाइल में डाला था. दोपहर

12 बजे जैसे ही रिमाइंडर मैसेज ने उसे विश करना याद दिलाया उस ने हर्ष को किस कर के अपने पुनर्मिलन की सालगिरह विश की और उसी वक्त इस में आज की तारीख सैट कर दी थी.

मगर आज वह चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाई थी, क्योंकि वह जख्मी हालत में बैड पर थी. उस ने एक नजर हर्र्ष पर डाली और रिमाइंडर में अगले साल की डेट सैट कर दी. हर्ष अभी भी आंखें मूंदे लेटा था. पता नहीं सो रहा था या कुछ सोच रहा था. आभा ने दर्द को सहन करते हुए एक बार फिर से अपनी आंखें बंद कर लीं. अब आभा का दिमाग भी यादों की बीती गलियों में घूमने लगा…

लगभग सालभर पहले की बात है. उसे अच्छी तरह याद है वह 4 मार्च की शाम. वह अपने कालेज की तरफ से 2 दिन का एक सेमीनार अटैंड करने जयपुर आई थी. शाम के समय टाइम पास करने के लिए जीटी पर घूमतेघूमते अचानक उसे हर्ष जैसा एक व्यक्ति दिखाई दिया.

वह चौंक गई, ‘हर्ष यहां कैसे हो सकता है?’ सोचतेसोचते वह उस व्यक्ति के पीछे हो ली. एक शौप पर आखिर वह उस के सामने आ ही गई. उस व्यक्ति की आंखों में भी पहचान की परछाईं सी उभरी. दोनों सकपकाए और फिर मुसकरा दिए.

हां, यह हर्ष ही था उस का कालेज का साथी, उस का खास दोस्त, जो न जाने उसे किस अपराध की सजा दे कर अचानक उस से दूर चला गया था. कालेज के आखिरी दिनों में ही हर्ष उस से कुछ खिंचाखिंचा सा रहने लगा था और फिर फाइनल परीक्षा खत्म होतेहोते बिना कुछ कहेसुने हर्ष उस की जिंदगी से चला गया था. कितना ढूंढ़ा था उस ने हर्ष को, मगर किसी से भी उसे हर्ष की कोई खबर नहीं मिली. आभा आज तक हर्ष के उस बदले हुए व्यवहार का कारण नहीं समझ पाई थी.

धीरेधीरे वक्त अपने रंग दिखाता रहा. डाक्टरेट करने के बाद आभा स्थानीय गर्ल्स कालेज में लैक्चरर लग गई और अपने विगत से लड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश करने लगी. इस बीच आभा ने अपने पापा की पसंद के लड़के राहुल से शादी भी कर ली.

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2 बच्चों की मां बनने के बाद भी आभा को राहुल के लिए अपने दिल में कभी प्यार वाली तड़प महसूस नहीं हुई. शायद अब भी दिल हर्ष के लिए ही धड़कना चाहता था.

शादी कर के जैसे एक समझौता किया था उस ने अपनी जिंदगी से. हालांकि समय के साथसाथ हर्ष की स्मृतियों पर जमती धूल की परत भी मोटी होती चली गई थी, मगर कहीं न कहीं उस के अवचेतन मन में हर्ष आज भी मौजूद था. शायद इसीलिए वह राहुल को कभी दिल से प्यार नहीं कर पाईर् थी. राहुल सिर्फ उस के तन को ही छू पाया था, मन का दरवाजा आभा उस के लिए नहीं खोल पाई थी.

जीटी में हर्ष को यों अचानक अपने सामने पा कर आभा को यकीन ही नहीं हुआ. हर्ष का भी लगभग यही हाल था.

‘‘कैसी हो आभा?’’ आखिर हर्ष ने ही चुप्पी तोड़ी.

‘तुम कौन होते हो यह पूछने वाले?’ आभा मन ही मन गुस्साई, मगर प्रत्यक्ष में बोली, ‘‘अच्छी हूं… आप सुनाइए… अकेले हैं या आप की मैडम भी साथ हैं?’’

‘‘अभी तो अकेला ही हूं,’’ हर्ष ने अपने चिरपरिचित अंदाज में मुसकराते हुए कहा और फिर आभा को कौफी पीने का औफर दिया. उस की मुसकान देख कर आभा का दिल जैसे उछल कर बाहर आ गया. दिल ने कहा कि कमबख्त यह मुसकान… आज भी वैसी ही कातिल है? लेकिन दिमाग ने सहज हो कर हर्ष का प्रस्ताव स्वीकार लिया. शाम दोनों ने साथ बिताई.

थोड़ी देर तो दोनों में औपचारिक बातें हुईं और फिर 1-1 कर के संकोच की

दीवारें टूटने लगीं. देर रात तक गिलेशिकवे होते रहे. कभी हर्ष ने अपनी पलकें नम कीं तो कभी आभा ने अपनी आंखें छलकाईं. हर्ष ने खुद को आभा का गुनहगार मानते हुए अपनी मजबूरियां बताईं. अपनी कायरता भी स्वीकार की और यों बिना कहेसुने चले जाने के लिए उस से माफी भी मांगी.

आभा ने भी जो हुआ सो हुआ कहते हुए उसे माफ कर दिया. फिर डिनर के बाद बिदा लेते हुए दोनों ने एकदूसरे को गले लगाया और अगले दिन शाम को फिर यहीं मिलने का वादा कर के दोनों अपनेअपने होटल की तरफ चल दिए.

अगले दिन बातचीत के दौरान हर्ष ने उसे बताया कि वह एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में साइट इंजीनियर है और इसी सिलसिले में उसे महीने में लगभग 15-20 दिन घर से बाहर रहना पड़ता है और यह भी बताया कि उस के 2 बच्चे हैं और वह अपनी शादीशुदा जिंदगी से काफी संतुष्ट है.

‘‘तुम अपनी लाइफ से संतुष्ट हो या खुश भी हो?’’ एकाएक आभा ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.

‘‘दोनों स्थितियां अलग होती हैं क्या?’’ हर्ष ने भी प्रति प्रश्न किया.

‘‘वक्त आने पर बताऊंगी,’’ आभा ने टाल दिया.

आभा की ट्रेन रात 11 बजे की थी और हर्ष तब तक उस के साथ ही था. दोनों ने आगे भी टच में रहने का वादा करते हुए बिदा ली.

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अगले दिन कालेज पहुंचते ही आभा ने हर्ष को फोन किया. हर्ष ने जिस तत्परता से फोन उठाया उसे महसूस कर के आभा को हंसी आ गई. बोली, ‘‘फोन का ही इंतजार कर रहे थे क्या?’’

अब हर्ष को भी अपने उतावलेपन पर आश्चर्य हुआ. बातें करतेकरते कब 1 घंटा बीत गया, दोनों को पता ही नहीं चला. आभा की क्लास का टाइम हो गया. वह पीरियड लेने चली गईर्. वापस आते ही उस ने फिर हर्ष को फोन लगाया. फिर वही लंबी बातें. दिन कब गुजर गया पता ही नहीं चला. देर रात तक दोनों व्हाट्सऐप पर औनलाइन रहे और सुबह उठते ही  फिर वही सिलसिला.

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