लेखिका- आशा शर्मा
अब तो यह रोज का नियम ही बन गया. न जाने कितनी बातें थीं उन के पास जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं. कईर् बार तो यह होता था कि दोनों के ही पास कहने के लिए शब्द नहीं होते थे. मगर बस वे एकदूसरे से जुड़े हुए हैं यही सोच कर फोन थामे रहते. इसी चक्कर में दोनों के कई जरूरी काम भी छूटने लगे. मगर न जाने कैसा नशा सवार था दोनों ही पर कि यदि 1 घंटा भी फोन पर बात न हो तो दोनों को ही बेचैनी होने लगती.
ऐसी दीवानगी तो शायद उस कच्ची उम्र में भी नहीं थी जब उन के प्यार की शुरुआत हुई थी. आभा को लग रहा था जैसे खोया हुआ प्यार फिर से उस के जीवन में दस्तक दे रहा है. मगर हर्ष अब भी इस सचाई को जानते हुए भी यह स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि उसे आभा से प्यार है.
‘‘हर्ष, तुम इस बात को स्वीकार क्यों नहीं कर लेते कि तुम्हें आज भी मुझ से प्यार है?’’ एक दिन आभा ने पूछा.
‘‘अगर मैं यह प्यार स्वीकार कर भी लूं तो क्या समाज इसे स्वीकार करने देगा? कौन इस बात का समर्थन करेगा कि मैं ने शादी किसी और से की है और प्यार तुम से करता हूं,’’ हर्ष ने तड़पते हुए जवाब दिया.
‘‘शादी करना और प्यार करना दोनों अलगअलग बातें हैं हर्ष… जिसे चाहें शादी भी उसी से हो जब यह जरूरी नहीं, तो फिर यह जरूरी क्यों है कि जिस से शादी हो उसी को चाहा भी जाए?’’ आभा ने अपना तर्क दिया. उस का दिल रो रहा था.
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‘‘चलो, माना कि यह जरूरी नहीं, मगर इस में हमारे जीवनसाथियों की क्या गलती है? उन्हें हमारी अधूरी चाहत की सजा क्यों मिले?’’ हर्ष ने फिर तर्क किया.
‘‘हर्ष, मैं किसी को सजा देने की बात नहीं कर रही… हम ने अपनी सारी जिंदगी उन की खुशी के लिए जी है… क्या हमारा अपनेआप के प्रति कोई कर्तव्य नहीं? क्या हमें अपनी खुशी के लिए जीने का अधिकार नहीं? वैसे भी अब हम उम्र की मध्यवय में आ चुके हैं. जीने लायक जिंदगी बची ही कितनी है हमारे पास… मैं कुछ लमहे अपने लिए जीना चाहती हूं. मैं तुम्हारे साथ जीना चाहती हूं… मैं महसूस करना चाहती हूं कि खुशी क्या होती है,’’ कहतेकहते आभा का स्वर भीग गया.
‘‘क्यों? क्या तुम अपनी लाइफ से अब तक खुश नहीं थीं? क्या कमी है तुम्हें? सबकुछ तो है तुम्हारे पास,’’ हर्ष ने उसे टटोला.
‘‘खुश दिखना और खुश होना दोनों में बहुत फर्क होता है हर्ष. तुम नहीं समझोगे.’’
आभा ने जब यह कहा तो उस की आवाज की तरलता हर्ष ने भी महसूस की. शायद वह भी उस में भीग गया था. मगर सच का सामना करने की हिम्मत फिर भी नहीं जुटा पाया.
लगभग 10 महीने दोनों इसी तरह सोशल मीडिया पर जुड़े रहे. रोज घंटों बातें करने पर भी उन की बातें खत्म नहीं होती थीं. आभा की तड़प इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि अब वह हर्ष से प्रत्यक्ष मिलने के लिए बेचैन होने लगी. लेकिन हर्ष का व्यवहार अभी भी उस के लिए एक पहेली बना हुआ था.
कभी तो उसे लगता जैसे हर्ष आज भी सिर्फ उसी का है और कभी वह एकदम बेगानों सा लगने लगता. वह 2 कदम आगे बढ़ता और अगले ही पल 4 कदम पीछे हो जाता. वह आभा का साथ तो चाहता था, मगर समाज में दोनों की ही प्रतिष्ठा को भी दांव पर नहीं लगाना चाहता था. उसे डर था कि कहीं ऐसा न हो वह एक बार मिलने के बाद आभा से दूर ही न रह पाए… फिर क्या करेगा वह? मगर आभा अब मन ही मन एक ठोस निर्णय ले चुकी थी.
‘4 मार्च’ आने वाला था. आभा ने हर्ष
को याद दिलाया कि पिछले साल इसी दिन वे
2 बिछड़े प्रेमी फिर से मिले थे. उस ने आखिर हर्ष को मना ही लिया था यह दिन एकसाथ मनाने के लिए और बहुत सोचविचार कर के दोनों ने उस दिन जयपुर में मिलना तय किया.
हर्ष दिल्ली से और आभा जोधपुर से सुबह ही जयपुर आई. होटल में पतिपत्नी की तरह रुके. पूरा दिन साथ बिताया… जीभर कर प्यार किया और दोपहर ठीक 12 बजे आभा ने हर्ष को ‘हैप्पी ऐनिवर्सरी’ विश किया और फिर उसी समय अपने मोबाइल में अगले साल के लिए यह रिमाइंडर डाल लिया.
रात को जब बिदा लेने लगे तो आभा ने हर्ष को एक बार फिर चूमते हुए कहा, ‘‘हर्ष,
खुशी क्या होती है, यह आज तुम ने मुझे महसूस करवाया है… थैंक्स… अब अगर मैं मर भी जाऊं तो कोई गम नहीं.’’
‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन… अभी तो हमारी जिंदगी से फिर से मुलाकात हुई है… सच आभा मैं तो मशीन ही बन चुका था. मेरे दिल को फिर से धड़काने के लिए शुक्रिया. और हां, खुशी और संतुष्टि में फर्क महसूस करवाने के लिए भी,’’ हर्ष ने उस के चेहरे पर से बाल हटाते हुए कहा और फिर से उस की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींच लिया.
‘‘अब आशिकी छोड़ो… मेरी टे्रन का टाइम हो रहा है,’’ आभा ने मुसकराते हुए हर्ष को
अपने से अलग किया.
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उसी शाम दोनों ने वादा किया था कि हर साल 4 मार्च को वे दोनों इसी तरह इसी जगह मिला करेंगे. इसी वादे के तहत आज भी दोनों यहां जयपुर आए थे और यह हादसा हो गया.
‘‘आभा, डाक्टर ने तुम्हारे डिस्चार्ज पेपर बना दिए. मैं टैक्सी ले कर आता हूं,’’ हर्ष ने धीरे से उसे जगाते हुए कहा तो आभा फिर से भयभीत हो गई कि कैसे वापस जाएगी अब वह जोधपुर? कैसे राहुल का सामना कर पाएगी? मगर फेस तो करना ही पड़ेगा. जो होगा, देखा जाएगा. सोचते हुए आभा जोधपुर जाने के लिए अपनेआप को मानसिक रूप से तैयार करने लगी.
आभा ने राहुल को फोन कर के अपने ऐक्सीडैंट के बारे में बता दिया. राहुल ने सिर्फ इतना ही पूछा, ‘‘ज्यादा चोट तो नहीं आई?’’
आभा के नहीं कहते ही राहुल ने अगला प्रश्न दागा, ‘‘सरकारी हौस्पिटल में ही दिखाया था न… ये प्राइवेट वाले तो बस लूटने के मौके ढूंढ़ते हैं.’’
सुन कर आभा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि उसे राहुल से ऐसी ही उम्मीद थी.
आभा ने बहुत कहा कि वह अकेली जोधपुर चली जाएगी, मगर हर्ष ने उस की एक न सुनी और टैक्सी में उस के साथ जोधपुर चल पड़ा.
आभा को हर्ष का सहारा ले कर उतरते देख राहुल का माथा ठनका. आभा ने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘ये मेरे पुराने दोस्त हैं… जयपुर में मेरे साथ ही थे.’’
राहुल ने हर्ष में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘टैक्सी से आने की क्या जरूरत थी? ट्रेन से भी आ सकती थी.’’
आभा को जोधुपर छोड़ उसी टैक्सी से हर्ष लौट गया.
आभा 6 सप्ताह की बैड रैस्ट पर थी. दिनभर बिस्तर पर पड़ेपड़े उसे हर्ष से बातें करने के अलावा और कोई काम ही नहीं सूझता था. कभी जब हर्ष अपने प्रोजैक्ट में बिजी होता तो उस से बात नहीं कर पाता था. यह बात आभा को अखर जाती थी. वह फोन या व्हाट्सऐप पर मैसेज कर के अपनी नाराजगी जताती. फिर हर्ष उसे मनुहार कर के मनाता. आभा को उस का यों मनाना बहुत सुहाता. वह मन ही मन अपने प्यार पर इतराती.
ऐसे ही एक दिन वह अपने बैड पर लेटीलेटी हर्ष से बातें कर रही थी और उस ने अपनी आंखें बंद कर रखी थीं. उसे पता ही नहीं चला कि राहुल कब से वहां खड़ा उस की बातें सुन रहा है.
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‘‘बाय… लव यू…’’ कहते हुए फोन रखने के साथ ही जब राहुल
पर उस की नजर पड़ी तो वह सकपका गई. राहुल की आंखों का गुस्सा उसे अंदर तक हिला गया. उसे लगा मानो आज उस की जिंदगी से खुशियों की बिदाई हो गई.
आगे पढ़ें- राहुल ने आंखें तरेर कर…