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सात्वत ने जेब से चाबी निकाल कर चेष्टा की ओर बढ़ा दी. दरवाजा खोल कर दोनों अंदर बैठ गए तो गाड़ी स्टार्ट करते हुए चेष्टा ने पूछा, ‘‘कहां जाना है? पहले अस्पताल चलें, ड्रेसिंग करवाने?’’

सात्वत जल्दी से बोला, ‘‘नहींनहीं, मेरे फ्लैट में ड्रेसिंग का सामान है. मैं कर लूंगा...अभी मुझे तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाना है.’’ कुछ पल की खामोशी रही. चेष्टा बिना कुछ बोले सामने की ओर देखती कार चलाती रही तो सात्वत ने पूछा, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो? तुम तो पूना में थीं?’’

चेष्टा ने उस की ओर तीखी निगाहों से देखा फिर लंबा निश्वास ले कर उस ने कार को आगे बढ़ा दिया. लालबत्ती पार कर के कार सफदरजंग अस्पताल पहुंची. लेकिन चेष्टा ने वहां कार नहीं रोकी. उस ने आगे बढ़ कर सफदरजंग एनक्लेव में एक दोमंजिला भवन के गेट के अंदर जा कर पोर्टिको में कार रोकी. सात्वत इस बीच सीट पर पीछे सिर टिकाए खामोश बैठा रहा. केवल बीचबीच में वह 1-2 पल के लिए तिरछी निगाहों से चेष्टा की ओर देख लेता था.

चेष्टा ने कार का दरवाजा खोल कर बाहर आते हुए कहा, ‘‘चलो,’’ तो सात्वत चौंक कर दरवाजा खोल कर बाहर निकला. चेष्टा ने सीढि़यां चढ़ते हुए आने का इशारा किया. दोनों पहली मंजिल में बरामदे के दाईं ओर एक आफिस के बाहर पहुंचे. चपरासी ने झट से दरवाजा खोला और चेष्टा के पीछे सात्वत अंदर गया. थोड़ा आश्चर्यचकित सा, हलका सा लंगड़ाता हुआ.

छोटा सा आफिस का कमरा था. एक मेज, कई कुरसियां, स्टूल, अलमारी, फाइलिंग कैबिनेट, एक टेलीफोन और एक कंप्यूटर आदि.

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