कहानी- कीर्ति प्रकाश

योंतो रवि और प्रेरणा की शादी अरेंज्ड मैरिज थी, मगर सच यही था कि दोनों एकदूसरे को शादी से 3 साल पहले से जानते थे और एकदूसरे को पसंद करते थे. दिल में एकदूसरे को जगह दी तो फिर कोई और दिल में न आया. दुनिया एकदूसरे के दिल में ही बसा ली सदा के लिए.

सब के लिए एक नियत वक्त आता है और इन दोनों के जीवन में भी वह नियत खूबसूरत वक्त आया जब मातापिता, समाज ने इन्हें पतिपत्नी के बंधन में बांध दिया.

जीवन आगे बढ़ा और प्यार भी. रवि और प्रेरणा के बीच हर तरह की बात होती. अमूमन पतिपत्नी बनने के बाद ज्यादातर जोड़ों के बीच बहुत सारी बातें खत्म हो जाती हैं. मसलन, राजनीति, खेलकूद, देशदुनिया, साइंस, कैरियर, हंसीमजाक आदि. मगर इन के बीच सबकुछ पहले जैसा था. हंसीमजाक, ठिठोली, वादविवाद, एकदूसरे की टांग खिंचाई, एकदूसरे की खास बातों में सलाह देनालेना, साथ घूमनाफिरना, एक ही प्लेट में खाना, एकदूसरे का इंतजार करना आदि सबकुछ बहुत प्यारा था रवि और प्रेरणा के बीच. ऐसा नहीं कि रवि और प्रेरणा के  झगड़े न होते हों. होते थे मगर वैसे ही जैसे दोस्त लड़ते झगड़ते, मुंह फुलाते और आखिर में वही होता, चलो छोड़ो न यार जाने दो न. सौरी बाबा... माफ कर दो न. गलती हो गई और दोनों एकदूसरे को गले लगा लेते.

रवि और प्रेरणा की छोटी सी प्यारी सी गृहस्थी थी. शादी को 6 साल हो गए थे. अनंत 2 साल का हो गया था. अब एक और मेहमान बस 4-5 महीनों में आने वाला था. जीवन की बगिया महक रही थी. रवि प्रेरणा का बहुत खयाल रखता था. प्रेरणा ने भी जीवन के हर पल में रवि को हद से ज्यादा प्यार किया. शादी के 6 साल बाद भी यों लगता जैसे अब भी दोनों प्यार में हैं और जल्द से जल्द एकदूसरे के जीवनसाथी बनना चाहते हों. रिश्तेदारों और करीबी दोस्तों के अलावा शायद ही कोई सम झ पाता था कि दोनों पतिपत्नी हैं. हां, अनंत के कारण भले ही अंदाज लगा लेते थे वरना नहीं.

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