उम्र की परिपक्वता की ढलान पर खड़ी रेणु पार्क में अपनी शाम की सैर खत्म कर के बैंच पर बैठी सुस्ता रही थी. पास वाली बैंच पर कुछ लड़कियां बैठी गपशप कर रही थीं. वे शायद एक ही कालेज में पढ़ती थीं और अगले दिन की क्लास बंक करने की योजना बना रही थीं. उन की बातों को सुन कर रेणु के चेहरे पर एक चंचल सी मुसकान दौड़ गई. उसे उन की बातों में कहीं अपना अतीत झलकता सा लगा.

अपनी जिंदगी की कहानी के खट्टेमीठे पलों को याद करती रेणु कब पार्क की सैर से निकल कर अतीत की सैर पर चल पड़ी, उसे पता ही नहीं चला. अतीत के इस पन्ने पर लिखी थी करीब 30 साल पुरानी वह कहानी जब रेणु नईनई कालेज गई थी. अभी ग्रैजुएशन के पहले साल में थी. पहली बार आजादी का थोड़ा सा स्वाद चखने को मिला था वरना स्कूल तो घर के इतने पास था कि जोर से छींक भी दो तो आवाज घर पहुंच जाती थी.

घर से कौलेज पहुंचने में रेणु को बस से करीब 40-45 मिनट लगते थे. वह खुश थी कि कालेज घर से थोड़ी तो दूर है. रेणु के महल्लेपड़ोस की ज्यादातर लड़कियां इसी कालेज में आती थीं, इसलिए किसी भी शरारत को छिपाना तो अब भी आसान नहीं था. सब को राजदार बनाना पड़ता था.

महरौली के निम्न मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी रेणु के घर का रहनसहन काफी कुछ गांव जैसा ही था. दरअसल, रेणु के जैसी पारिवारिक स्थिति वाले लोग एक दोहरी कल्चरल स्टैंडिंग के बीच ? झेलते रहते थे. एक ओर पढ़ी-लिखी नई पीढ़ी अपने को महानगरीय सभ्यता के नजदीक पाकर उस ओर खिंचती थी, तो दूसरी ओर कम पढ़ी-लिखी पिछली पीढ़ी अपनी प्राचीन नैतिकता की जंजीर उनके

पैरों में डाल देती थी. सगे रिश्तों के अलावा ढेर सारे मुंह बोले रिश्ते जहां पुरानी पीढ़ी का सरमाया होते थे, वहीं नई पीढ़ी के लिए अनचाही रवायत. हर बात पर घर वालों के साथसाथ महल्लेपड़ोस की भी रोकटोक

के बीच नई पीढ़ी को 1-1 कदम ऐसे फूंकफूंक कर रखना पड़ता था जैसे लैंड माइंस बिछी हों.

‘‘2 साल पहले ही रेणु के बड़े भाई

की शादी हुई थी और अभी 2 दिन पहले ही वह एक प्यारे से गोलमटोल भतीजे की बूआ बनी थी. यह बच्चा नई पीढ़ी का पहला नौनिहाल था. घर में बहुत ही खुशी का माहौल था.

रेणु के बुआ बनने की खुशखबरी जब उस की सहेलियों तक पहुंची तो सब ने उस से पार्टी के तौर पर नई फिल्म ‘लव स्टोरी’ दिखाने का आग्रह किया. रेणु के लिए सब

के टिकट का इंतजाम करना इतना मुश्किल नहीं था जितना कि सहेलियों के साथ पिक्चर देखना, अम्मां से इजाजत लेना. रेणु आज

तक अपनी अम्मां को यह तो सम?ा नहीं सकी थी कि पिक्चर देखने का मतलब लड़की का हाथ से निकल जाना या बिगड़ जाना नहीं होता. ऐसे में अम्मां उसे सहेलियों के साथ पिक्चर देखने की इजाजत देने से पहले तो उस का कालेज जाना बंद करवा देगी और कहेगी,

‘‘घर बैठ कर घर के कामकाज सीख ले, कोई जरूरत नहीं है कालेज जाने की, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’’

रेणु सोच रही थी कि कोई तिगड़म तो भिड़ानी ही पड़ेगी वरना इतने सालों में

जो एक निर्भीक लड़की की छवि सहेलियों के बीच बनाई थी उस की तो इतिश्री हो जाएगी. उस ने सोचा क्यों न अम्मां के बजाय बड़े भाई से पूछ लूं. वैसे तो रेणु की आजादी के मामले में वह अम्मां से भी दो कदम आगे था लेकिन आजकल स्थिति थोड़ी अलग थी. उस ने नयानया बाप का स्वाद चखा था, सो आजकल उस खुशी के नशे में रहता था. रेणु ने सोचा कि जब वह नवजात के साथ होगा, तब वह बात करेगी. फिर कुछ सहारा तो भाभी भी लगा देंगी. वैसे भी जब से उन्होंने बेटे को जन्म दिया है तब से उन की बात की खास महत्ता हो गई है पूरे परिवार में.

अगले दिन जब रेणु ने अपनी रिकवैस्ट को नरमनरम शब्दों के तौलिए में लपेट कर उस पर माहौल की खुशी का इत्र छिड़क कर बड़े भाई के सामने पेश किया तो पता नहीं ये रेणु के शब्दों का जादू था या भाई के पिता बनने का असर या यह कि उस के भाई ने न केवल इजाजत दे दी बल्कि अपनी जेब से पैसे निकालते हुए पूछा. ‘‘कितनी सहेलियां जाएंगी?’’

‘‘5,’’ रेणु खुशी से उछल कर बोली.

‘‘ठीक है, छोटे भाई के साथ जाना,’’ कह कर वह रेणु के खुशी के उबाल पर ठंडे पानी के छींटे मारकर चलता बना.

अब समस्या थी कि छोटे भाई का

पत्ता कैसे काटें? रेणु ने छोटे भाई को सारी बात बता कर उसे कल के 6 टिकट लाने

को कहा.

यह सुनते ही वह उबल पड़ा, ‘‘पागल है क्या, मैं भला तेरे और तेरी सहेलियों के साथ फिल्म देखने क्यों जाऊंगा?’’

रेणु अपनी खुशी छिपाते हुए रोआंसे स्वर में बोली, ‘‘ठीक है, फिर हम सब अकेली चली जाएंगी पर तू बड़े भाई को

मत बताना.’’

‘‘ठीक है तू भी मत बताना कि मैं तेरे साथ नहीं गया और हां मेरे टिकट के पैसे तो दे दे जो भाई ने दिए थे.’’

पैसे ले कर छोटा भाई भी मस्त हो गया. मेहनत मेरी पर फल उसे भी मिल गया था.

रेणु को लगा कि चलो अपना काम

तो हो गया. छोटे भाई का पत्ता खुद ही कट गया. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों को फोन किया.

‘‘कल 12 से 3 का शो पक्का. हमें अपना लंच के बाद की 2 क्लासेज मिस करनी होंगी.’’

इस में भला किसे मुश्किल होनी थी? उन्हें तो बस कालेज से लौटने के टाइम तक घर लौटना था.

अगले दिन सही वक्त पर सब सहेलियां सिनेमाहौल पहुंच गईं.

रोमांटिक फिल्म थी, तो सभी लड़कियां जमीन से 2-3 इंच ऊपर ही चल रही थीं. फिल्म समय पर शुरू हो गई. कुमार गौरव के साथ विजयेता पंडित तो हमें सिर्फ 2-4 सीन में ही दिखाई दीं वरना तो परदे पर ज्यादातर हर लड़की खुद को कुमार गौरव के साथ

देख रही थी और सपनों के हिंडोले में ल रही थी.

मध्यांतर में रेणु वाशरूम गई. वह वाशरूम से निकल कर वाशबेसिन में हाथ धो रही थी कि शीशे में उस की नजर अपने पीछे खड़ी आशा दीदी पर पड़ी.

आशा दीदी, रेणु के पड़ोस में रहने वाले उस के मुंह बोले मामा की बेटी थी.

‘‘मुंह बोले क्यों.’’

‘‘अरे भई वे अम्मा के गांव के थे न इसीलिए.’’

अच्छा कालेज के टाइम में, क्लास छोड़ कर, घर वालों से छिप कर फिल्म देखी जा रही है. जरा पहुंचने दे मु?ो घर ऐसा बम फोड़ूंगी कि नानी याद आ जाएगी,’’ आशा दीदी तो चुप थीं पर जैसी उन की आंखें कह रही हों.

यह 80 के दशक की बात है, जब किसी लड़की का स्कूलकालेज के टाइम पर सिनेमाहौल में पाया जाना किसी गंभीर अपराध से कम नहीं था. रेणु के पड़ोस की एक लड़की की इसी

जुर्म के लिए आननफानन में शादी कर दी गई

थी. यह खबर महल्ले में फैले कि लड़की

कालेज के समय में फिल्म देखते हुए पकड़ी

गई, उस से पहले ही लड़की को विदा कर दिया गया था.

अब ऐसी स्थिति में रेणु की हालत खराब होना तो लाजिम था. वह चाह रही थी कि चाहे डांट कर ही सही, लेकिन आशा दीदी पूछ तो ले कि मैं कालेज के टाइम में यहां क्यों हूं ताकि मैं बता सकूं कि मैं घर वालों से इजाजत ले कर आई हूं. अब बिना पूछे कैसे बताऊं.

लेकिन आशा दीदी थी कि उस की गुस्से से भरी आंखें तो बोल रही थीं, लेकिन जबान पर ताला पड़ा था.

आखिर रेणु ने खुद ही इधरउधर की बातें शुरू कीं, ‘‘नमस्ते दीदी, कैसी

हो? जीजाजी कैसे हैं?’’

‘‘सब ठीक,’’ एक छोटा सा जवाब जबान से आया लेकिन गुस्से से भरी आंखें कह रही थीं कि हिम्मत तो देखो इस छोरी की, कालेज से भाग कर यहां लव स्टोरी देखी जा रही है और हाल पूछ रही है मेरे. हाल तो मैं तेरे पूछूंगी, तेरी यह हरकत सब को बताने के बाद.

इधर रेणु की पिक्चर शुरू होने वाली थी उधर दीदी थी कि पूछ ही नहीं रही थी.

उसे पूरा भरोसा था कि अगर दीदी बिना पूछे चली गई तो रेणु के घर पहुंचने से पहले तो दीदी पूरे महल्ले में पोस्टर लगवा चुकी होंगी. फिर भला इजाजत ले कर जाने की बात बताने का भी क्या फायदा होगा. लेकिन बिना पूछे बताए भी कैसे. रेणु अजीब कशमकश में थी.

तभी उस ने देखा कि दीदी तो अंदर की ओर जा रही हैं.

अब रेणु क्या करे, बिना बताए भला कैसे जाने दे, सो वह दौड़ कर दीदी के सामने जा खड़ी हुई और बोली, ‘‘दीदी आप को खुशखबरी पता है न? मैं बूआ बन गई हूं.’’

‘‘पता है,’’ कह कर दीदी हलका सा मुसकराई और फिर चल दी.

रेणु भी बिना पूछे अपनी सफाई देती हुई पीछेपीछे चलते हुए बोली, ‘‘हां दीदी, इसी खुशी में तो मैं अपनी सहेलियों को पार्टी दे रही हूं.’’

‘‘पार्टी, यहां सिनेमाहौल में,’’ दीदी ठसके से बोलीं, ‘‘अभी घर जा कर तेरी अम्मां को सब बताती हूं, तेरी सारी पार्टी निकालती हूं,’’ दीदी का लावा फूटा.

‘‘अरे नहीं दीदी, मैं तो घर वालों से पूछ कर आई हूं. भतीजा आने की खुशी में घर वालों ने इजाजत दी है,’’ रेणु सफाई देते हुए बोली.

‘‘अच्छा, घर वालों से पूछ कर वह भी कालेज के टाइम में, हां…’’ आंखें मटकाते हुए दीदी ने सीधा वार किया.

‘‘अरे दीदी, वह मेरी लंच के बाद आज कोई क्लास नहीं थी न इसलिए आज का प्लान बनाया था.’’

‘‘अच्छा, दीदी ने संदेहात्मक दृष्टि से इधर उधर नजर घुमाई, जैसे किसी के वहां होने की उन्हें पूरी उम्मीद है.

‘अब मैं दीदी को कैसे विश्वास दिलाऊं,’ रेणु ने सोचा. ये तो घर जा कर चुप रहने से रहीं.

तभी उस ने अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस किया, मुड़ कर देखा तो उस का छोटा भाई था.

वह नकली चिंता जताते हुए बोला, ‘‘अरे रेणु तू यहां क्या कर रही है, मैं अंदर कब से तेरा इंतजार कर रहा था. पिक्चर निकल जाएगी भई. जल्दी कर. फिर दीदी की ओर एक नजर देख कर बोला, ‘‘नमस्ते दीदी, कैसी हो?’’

‘‘बिलकुल ठीक. अच्छा तू भी आया है? चलो फिर तुम पिक्चर देखो मैं चलती हूं,’’ कह कर दीदी चल दीं.

रेणु की सांस में सांस आई. वह भाई से बोली, ‘‘तूं यहां कैसे?’’

भाई ने बताया, ‘‘तेरी मेहरबानी से मु?ो भी टिकट के पैसे तो मिल ही गए थे, तो मैं भी अपने दोस्तों के साथ पिक्चर देखने आ गया. यहां देखा तो तेरी क्लास लगी हुई थी,’’ फिर शरारत से मुसकरा कर बोला, ‘‘चल सम?ा ले कि मैं ने तेरा एहसान उतार दिया. तूने मेरे लिए टिकट के पैसों का इंतजाम किया और मैं ने तु?ो दीदी से बचाया. हिसाब बराबर,’’ दोनों का ठहाका सिनेमाहौल में गूंज उठा.

तभ रेणु का मोबाइल फोन बज उठा और वह अतीत की टाइम मशीन से निकल कर

तुरंत पार्क की बैंच पर पहुंच गई. रेणु ने फोन उठाया.  उस की बेटी नीरा का फोन था.

‘हैलो मम्मा, मैं आज घर देर से आऊंगी. फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने जा रही हूं,’’ कालेज में ऐक्सट्रा क्लासेज के बाद नीरा ने फोन किया था.

‘‘ओके बेटा,’’ कह कर रेणु ने फोन रख दिया और वह घर की ओर चल पड़ी. रास्ते मे कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था, इसलिए वह अंधेरा होने से पहले घर पहुंच जाना चाहती थी.

जिन रास्तों पर वह जिंदगीभर चली थी, अब वे रास्ते लोगों को लंबे लगने लगे थे और सरकार द्वारा उन पर फ्लाईओवर बना कर उन्हें किसी तरह छोटा किया जा रहा था. रेणु सोच रही थी कि क्या ये फ्लाईओवर सिर्फ सड़कों पर ही बने हैं? जिंदगी की राहों पर भी तो हर कदम पर फ्लाईओवर बन गए हैं.                         द्य

उम्र की परिपक्वता की ढलान पर खड़ी रेणु पार्क में अपनी शाम की सैर खत्म कर के बैंच पर बैठी सुस्ता रही थी. पास वाली बैंच पर कुछ लड़कियां बैठी गपशप कर रही थीं. वे शायद एक ही कालेज में पढ़ती थीं और अगले दिन की क्लास बंक करने की योजना बना रही थीं. उन की बातों को सुन कर रेणु के चेहरे पर एक चंचल सी मुसकान दौड़ गई. उसे उन की बातों में कहीं अपना अतीत ?ालकता सा लगा.

अपनी जिंदगी की कहानी के खट्टेमीठे पलों को याद करती रेणु कब पार्क की सैर से निकल कर अतीत की सैर पर चल पड़ी, उसे पता ही नहीं चला. अतीत के इस पन्ने पर लिखी थी करीब 30 साल पुरानी वह कहानी जब रेणु नईनई कालेज गई थी. अभी ग्रैजुएशन के पहले साल में थी. पहली बार आजादी का थोड़ा सा स्वाद चखने को मिला था वरना स्कूल तो घर के इतने पास था कि जोर से छींक भी दो तो आवाज घर पहुंच जाती थी.

घर से कालेज पहुंचने में रेणु को बस से करीब 40-45 मिनट लगते थे. वह खुश थी कि कालेज घर से थोड़ी तो दूर है. रेणु के महल्लेपड़ोस की ज्यादातर लड़कियां इसी कालेज में आती थीं, इसलिए किसी भी शरारत को छिपाना तो अब भी आसान नहीं था. सब को राजदार बनाना पड़ता था.

महरौली के निम्न मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी रेणु के घर का रहनसहन काफी कुछ गांव जैसा ही था. दरअसल, रेणु के जैसी पारिवारिक स्थिति वाले लोग एक दोहरी कल्चरल स्टैंडिंग के बीच ?ालते रहते थे. एक ओर पढ़ीलिखी नई पीढ़ी अपने को महानगरीय सभ्यता के नजदीक पा कर उस ओर खिंचती थी, तो दूसरी ओर कम पढ़ीलिखी पिछली पीढ़ी अपनी प्राचीन नैतिकता की जंजीर उन के

पैरों में डाल देती थी. सगे रिश्तों के अलावा ढेर सारे मुंह बोले रिश्ते जहां पुरानी पीढ़ी का सरमाया होते थे, वहीं नई पीढ़ी के लिए अनचाही रवायत. हर बात पर घर वालों के साथसाथ महल्लेपड़ोस की भी रोकटोक

के बीच नई पीढ़ी को 1-1 कदम ऐसे फूंकफूंक कर रखना पड़ता था जैसे लैंड माइंस बिछी हों.

‘‘2 साल पहले ही रेणु के बड़े भाई

की शादी हुई थी और अभी 2 दिन पहले ही वह एक प्यारे से गोलमटोल भतीजे की बूआ बनी थी. यह बच्चा नई पीढ़ी का पहला नौनिहाल था. घर में बहुत ही खुशी का माहौल था.

रेणु के बुआ बनने की खुशखबरी जब उस की सहेलियों तक पहुंची तो सब ने उस से पार्टी के तौर पर नई फिल्म ‘लव स्टोरी’ दिखाने का आग्रह किया. रेणु के लिए सब

के टिकट का इंतजाम करना इतना मुश्किल नहीं था जितना कि सहेलियों के साथ पिक्चर देखना, अम्मां से इजाजत लेना. रेणु आज

तक अपनी अम्मां को यह तो सम?ा नहीं सकी थी कि पिक्चर देखने का मतलब लड़की का हाथ से निकल जाना या बिगड़ जाना नहीं होता. ऐसे में अम्मां उसे सहेलियों के साथ पिक्चर देखने की इजाजत देने से पहले तो उस का कालेज जाना बंद करवा देगी और कहेगी,

‘‘घर बैठ कर घर के कामकाज सीख ले, कोई जरूरत नहीं है कालेज जाने की, न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’’

रेणु सोच रही थी कि कोई तिगड़म तो भिड़ानी ही पड़ेगी वरना इतने सालों में

जो एक निर्भीक लड़की की छवि सहेलियों के बीच बनाई थी उस की तो इतिश्री हो जाएगी. उस ने सोचा क्यों न अम्मां के बजाय बड़े भाई से पूछ लूं. वैसे तो रेणु की आजादी के मामले में वह अम्मां से भी दो कदम आगे था लेकिन आजकल स्थिति थोड़ी अलग थी. उस ने नयानया बाप का स्वाद चखा था, सो आजकल उस खुशी के नशे में रहता था. रेणु ने सोचा कि जब वह नवजात के साथ होगा, तब वह बात करेगी. फिर कुछ सहारा तो भाभी भी लगा देंगी. वैसे भी जब से उन्होंने बेटे को जन्म दिया है तब से उन की बात की खास महत्ता हो गई है पूरे परिवार में.

अगले दिन जब रेणु ने अपनी रिकवैस्ट को नरमनरम शब्दों के तौलिए में लपेट कर उस पर माहौल की खुशी का इत्र छिड़क कर बड़े भाई के सामने पेश किया तो पता नहीं ये रेणु के शब्दों का जादू था या भाई के पिता बनने का असर या यह कि उस के भाई ने न केवल इजाजत दे दी बल्कि अपनी जेब से पैसे निकालते हुए पूछा. ‘‘कितनी सहेलियां जाएंगी?’’

‘‘5,’’ रेणु खुशी से उछल कर बोली.

‘‘ठीक है, छोटे भाई के साथ जाना,’’ कह कर वह रेणु के खुशी के उबाल पर ठंडे पानी के छींटे मारकर चलता बना.

अब समस्या थी कि छोटे भाई का

पत्ता कैसे काटें? रेणु ने छोटे भाई को सारी बात बता कर उसे कल के 6 टिकट लाने

को कहा.

यह सुनते ही वह उबल पड़ा, ‘‘पागल है क्या, मैं भला तेरे और तेरी सहेलियों के साथ फिल्म देखने क्यों जाऊंगा?’’

रेणु अपनी खुशी छिपाते हुए रोआंसे स्वर में बोली, ‘‘ठीक है, फिर हम सब अकेली चली जाएंगी पर तू बड़े भाई को

मत बताना.’’

‘‘ठीक है तू भी मत बताना कि मैं तेरे साथ नहीं गया और हां मेरे टिकट के पैसे तो दे दे जो भाई ने दिए थे.’’

पैसे ले कर छोटा भाई भी मस्त हो गया. मेहनत मेरी पर फल उसे भी मिल गया था.

रेणु को लगा कि चलो अपना काम

तो हो गया. छोटे भाई का पत्ता खुद ही कट गया. उस ने तुरंत अपनी सहेलियों को फोन किया.

‘‘कल 12 से 3 का शो पक्का. हमें अपना लंच के बाद की 2 क्लासेज मिस करनी होंगी.’’

इस में भला किसे मुश्किल होनी थी? उन्हें तो बस कालेज से लौटने के टाइम तक घर लौटना था.

अगले दिन सही वक्त पर सब सहेलियां सिनेमाहौल पहुंच गईं.

रोमांटिक फिल्म थी, तो सभी लड़कियां जमीन से 2-3 इंच ऊपर ही चल रही थीं. फिल्म समय पर शुरू हो गई. कुमार गौरव के साथ विजयेता पंडित तो हमें सिर्फ 2-4 सीन में ही दिखाई दीं वरना तो परदे पर ज्यादातर हर लड़की खुद को कुमार गौरव के साथ

देख रही थी और सपनों के हिंडोले में ?ाल रही थी.

मध्यांतर में रेणु वाशरूम गई. वह वाशरूम से निकल कर वाशबेसिन में हाथ धो रही थी कि शीशे में उस की नजर अपने पीछे खड़ी आशा दीदी पर पड़ी.

आशा दीदी, रेणु के पड़ोस में रहने वाले उस के मुंह बोले मामा की बेटी थी.

‘‘मुंह बोले क्यों.’’

‘‘अरे भई वे अम्मा के गांव के थे न इसीलिए.’’

अच्छा कालेज के टाइम में, क्लास छोड़ कर, घर वालों से छिप कर फिल्म देखी जा रही है. जरा पहुंचने दे मु?ो घर ऐसा बम फोड़ूंगी कि नानी याद आ जाएगी,’’ आशा दीदी तो चुप थीं पर जैसी उन की आंखें कह रही हों.

यह 80 के दशक की बात है, जब किसी लड़की का स्कूलकालेज के टाइम पर सिनेमाहौल में पाया जाना किसी गंभीर अपराध से कम नहीं था. रेणु के पड़ोस की एक लड़की की इसी

जुर्म के लिए आननफानन में शादी कर दी गई

थी. यह खबर महल्ले में फैले कि लड़की

कालेज के समय में फिल्म देखते हुए पकड़ी

गई, उस से पहले ही लड़की को विदा कर दिया गया था.

अब ऐसी स्थिति में रेणु की हालत खराब होना तो लाजिम था. वह चाह रही थी कि चाहे डांट कर ही सही, लेकिन आशा दीदी पूछ तो ले कि मैं कालेज के टाइम में यहां क्यों हूं ताकि मैं बता सकूं कि मैं घर वालों से इजाजत ले कर आई हूं. अब बिना पूछे कैसे बताऊं.

लेकिन आशा दीदी थी कि उस की गुस्से से भरी आंखें तो बोल रही थीं, लेकिन जबान पर ताला पड़ा था.

आखिर रेणु ने खुद ही इधरउधर की बातें शुरू कीं, ‘‘नमस्ते दीदी, कैसी

हो? जीजाजी कैसे हैं?’’

‘‘सब ठीक,’’ एक छोटा सा जवाब जबान से आया लेकिन गुस्से से भरी आंखें कह रही थीं कि हिम्मत तो देखो इस छोरी की, कालेज से भाग कर यहां लव स्टोरी देखी जा रही है और हाल पूछ रही है मेरे. हाल तो मैं तेरे पूछूंगी, तेरी यह हरकत सब को बताने के बाद.

इधर रेणु की पिक्चर शुरू होने वाली थी उधर दीदी थी कि पूछ ही नहीं रही थी.

उसे पूरा भरोसा था कि अगर दीदी बिना पूछे चली गई तो रेणु के घर पहुंचने से पहले तो दीदी पूरे महल्ले में पोस्टर लगवा चुकी होंगी. फिर भला इजाजत ले कर जाने की बात बताने का भी क्या फायदा होगा. लेकिन बिना पूछे बताए भी कैसे. रेणु अजीब कशमकश में थी.

तभी उस ने देखा कि दीदी तो अंदर की ओर जा रही हैं.

अब रेणु क्या करे, बिना बताए भला कैसे जाने दे, सो वह दौड़ कर दीदी के सामने जा खड़ी हुई और बोली, ‘‘दीदी आप को खुशखबरी पता है न? मैं बूआ बन गई हूं.’’

‘‘पता है,’’ कह कर दीदी हलका सा मुसकराई और फिर चल दी.

रेणु भी बिना पूछे अपनी सफाई देती हुई पीछेपीछे चलते हुए बोली, ‘‘हां दीदी, इसी खुशी में तो मैं अपनी सहेलियों को पार्टी दे रही हूं.’’

‘‘पार्टी, यहां सिनेमाहौल में,’’ दीदी ठसके से बोलीं, ‘‘अभी घर जा कर तेरी अम्मां को सब बताती हूं, तेरी सारी पार्टी निकालती हूं,’’ दीदी का लावा फूटा.

‘‘अरे नहीं दीदी, मैं तो घर वालों से पूछ कर आई हूं. भतीजा आने की खुशी में घर वालों ने इजाजत दी है,’’ रेणु सफाई देते हुए बोली.

‘‘अच्छा, घर वालों से पूछ कर वह भी कालेज के टाइम में, हां…’’ आंखें मटकाते हुए दीदी ने सीधा वार किया.

‘‘अरे दीदी, वह मेरी लंच के बाद आज कोई क्लास नहीं थी न इसलिए आज का प्लान बनाया था.’’

‘‘अच्छा, दीदी ने संदेहात्मक दृष्टि से इधर उधर नजर घुमाई, जैसे किसी के वहां होने की उन्हें पूरी उम्मीद है.

‘अब मैं दीदी को कैसे विश्वास दिलाऊं,’ रेणु ने सोचा. ये तो घर जा कर चुप रहने से रहीं.

तभी उस ने अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस किया, मुड़ कर देखा तो उस का छोटा भाई था.

वह नकली चिंता जताते हुए बोला, ‘‘अरे रेणु तू यहां क्या कर रही है, मैं अंदर कब से तेरा इंतजार कर रहा था. पिक्चर निकल जाएगी भई. जल्दी कर. फिर दीदी की ओर एक नजर देख कर बोला, ‘‘नमस्ते दीदी, कैसी हो?’’

‘‘बिलकुल ठीक. अच्छा तू भी आया है? चलो फिर तुम पिक्चर देखो मैं चलती हूं,’’ कह कर दीदी चल दीं.

रेणु की सांस में सांस आई. वह भाई से बोली, ‘‘तूं यहां कैसे?’’

भाई ने बताया, ‘‘तेरी मेहरबानी से मु?ो भी टिकट के पैसे तो मिल ही गए थे, तो मैं भी अपने दोस्तों के साथ पिक्चर देखने आ गया. यहां देखा तो तेरी क्लास लगी हुई थी,’’ फिर शरारत से मुसकरा कर बोला, ‘‘चल सम?ा ले कि मैं ने तेरा एहसान उतार दिया. तूने मेरे लिए टिकट के पैसों का इंतजाम किया और मैं ने तु?ो दीदी से बचाया. हिसाब बराबर,’’ दोनों का ठहाका सिनेमाहौल में गूंज उठा.

तभ रेणु का मोबाइल फोन बज उठा और वह अतीत की टाइम मशीन से निकल कर

तुरंत पार्क की बैंच पर पहुंच गई. रेणु ने फोन उठाया.  उस की बेटी नीरा का फोन था.

‘हैलो मम्मा, मैं आज घर देर से आऊंगी. फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने जा रही हूं,’’ कालेज में ऐक्सट्रा क्लासेज के बाद नीरा ने फोन किया था.

‘‘ओके बेटा,’’ कह कर रेणु ने फोन रख दिया और वह घर की ओर चल पड़ी. रास्ते मे कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था, इसलिए वह अंधेरा होने से पहले घर पहुंच जाना चाहती थी.

जिन रास्तों पर वह जिंदगीभर चली थी, अब वे रास्ते लोगों को लंबे लगने लगे थे और सरकार द्वारा उन पर फ्लाईओवर बना कर उन्हें किसी तरह छोटा किया जा रहा था. रेणु सोच रही थी कि क्या ये फ्लाईओवर सिर्फ सड़कों पर ही बने हैं? जिंदगी की राहों पर भी तो हर कदम पर फ्लाईओवर बन गए हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...